STORYMIRROR

Amit Kori

Abstract

4  

Amit Kori

Abstract

अब-तब

अब-तब

1 min
402

अब तकलीफ़ देती है, वो बातें 

जो कभी हँसाती थी,

रोते तो हम तब भी न थे, लेकिन 

वो यादें रुला जाती थी। 


तब मुस्कुराने के लिए एक,

पल ही काफी हुआ करता था 

अब एक पल की ख़ुशी के 

लिए ज़माने से लड़ना पड़ता है।


बात की गहराइयों को हम तब 

चेहरे से समझ जाया करते थे,

आज की तारीख़ में मामूली अलफ़ाज़ 

भी पल्ले नहीं पड़ते। 


तब आसमान में दुनिया भर के

चेहरे नज़र आते थे,

और आज की शामें अँधेरे 

से भी ज़्यादा धुँधली है। 


कभी पूरा जी लेने की आग थी,

जिन आँखों में 

और आज भरी दोपहर में 

रास्ता भटक जाते हैं। 


लगता है बेअसर हो गयी है, वो 

बातें अब जिनके कहने पर,

हम बेफ़िक्र होकर

सो जाया करते थे। 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract