आवाज़
आवाज़
आंँसू पोंछ के आने वाले कल को बुलाऊंँ
या बीते हुए कल में रहकर मैं वक़्त गवाऊंँ
किस की चौखट के आगे झोली मैं फैलाऊंँ
कौन सी दीवार पर जाकर मैं सर टकराऊँ
किस को मैं आवाज़ दूंँ किस को बेबात जगाऊंँ
आवारा गलियों में किस किस का दर खटखटाऊँ
किस किस को मैं अपना ज़ख्म दिखाऊंँ
या अपने दिल में ही इस राज़ को दफनाऊँ
अपने दिल के जज़्बात किस को सुनाऊंँ
बेमानी इस दुनियांँ में किस को आवाज़ लगाऊँ।