आत्मकल्याण
आत्मकल्याण
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कर्मो की गठरी बांध के सिर पर,
भटक रहे है भवसागर में।
आत्मकल्याण के बारे में,
कुछ नहीं हम कर रहे हैं।
करते रहे फरेब जीवन भर,
लूटते रहे तुम लोगों को।
क्या तुमने खोया है लोगों,
क्या तुमने यहाँ पाया है।
खुद का आकंलन खुद तुम करो
सत्य तुम समझ जाओगे।
आत्मकल्याण के पथ पर,
फिर तुम स्वंय चलकर आओगे।
कर्मो की गठरी बांध के सिर पर,
भटक रहे है भव भव में।
अभी नहीं संभले अगर तुम,
तो देर बहुत हो जाएगी।
जहाँ से वापिस आना मानो,
बहुत मुश्किल हो जाएगा।
आत्मा कल्याण के बारे में सोचो,
सत्य के पथ पर तुम चलो।
आत्मशुध्दि के महापर्व पर,
आत्मशुध्दि तुम कर लो।
कर्मो की गठरी बांध के सिर पर,
भटक रहे है भव भव में।