STORYMIRROR

प्रणव कुमार

Abstract

2  

प्रणव कुमार

Abstract

आत्मा का विकास

आत्मा का विकास

1 min
230

आत्मा का विकास कहां

तक किया तुमने,

महत्वाकांछाओं की तरह

पैर पसार कर भ्रमण किया,

मजबूत सी कड़ी को

कमजोर बना के छोड़ा,


अपनों की अनगिनत ग़लतियों

का पिटारा समझ छोड़ा,

आत्मा की अभिव्यक्ति का क्या?

ना कभी प्रभुत्त्व की दुहाई जानी,

ना कभी आदमियता के सैकड़े

तक ही भ्रमण कर पाए,


स्वार्थ की इकाई में भटके रहे,

आत्मा का भ्रमण तो अनन्त

तक संभव था,

आत्मा के साथ तुम्हारे

मनमुटाव की गत देखो,

आज वो यहीं कहीं तुम्हारे

स्वार्थ की बेड़ियों में जकड़ा है।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract