आत्मा का विकास
आत्मा का विकास
आत्मा का विकास कहां
तक किया तुमने,
महत्वाकांछाओं की तरह
पैर पसार कर भ्रमण किया,
मजबूत सी कड़ी को
कमजोर बना के छोड़ा,
अपनों की अनगिनत ग़लतियों
का पिटारा समझ छोड़ा,
आत्मा की अभिव्यक्ति का क्या?
ना कभी प्रभुत्त्व की दुहाई जानी,
ना कभी आदमियता के सैकड़े
तक ही भ्रमण कर पाए,
स्वार्थ की इकाई में भटके रहे,
आत्मा का भ्रमण तो अनन्त
तक संभव था,
आत्मा के साथ तुम्हारे
मनमुटाव की गत देखो,
आज वो यहीं कहीं तुम्हारे
स्वार्थ की बेड़ियों में जकड़ा है।
