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Prem Bajaj

Romance

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Prem Bajaj

Romance

आते रहा करो

आते रहा करो

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आते रहा करो शहर हमारे

ना जाने किस गली के किस मोड़ पे मुलाक़ात हो जाए ।

बरसों से ये गलियां राह तकती हैं तुम्हारी ,

थकी -थकी नींदे मेरी और ख़ाली सुबह भी राह तकती है ।

बैचैन रातों का , बेज़ार सुबह का सफ़र ये मेरा रोज़ का है ,

लिए नैयनों के चिराग खड़ी हूँ आशा की मुँडेर पर ,

ना जाने कब मेरे अश्कों का धुँधलका हटे तो तुम्हारी छवि नज़र आ जाए शायद । 

खोई - खोई रहती हूँ आजकल हर पल,

मेरी आँखो से मेरे दिल की तिशनगी नज़र आने लगी है ।

कितनी लचीली थी ये दिलों की डगर,

ना जाने क्यों सिकुड़ गई अब ,

ज़रा इक कदम तो बढ़ाओ खत्म हो जाऐंगे सब फ़ासले । 

कभी तो आजाओ पास बैठो पल दो पल मेरे ,

मेरा ना सही अपना ही हाले-दिल सुना जाओ । 

ज़िद है हमारी भी एहदे-वफ़ा निभाऐंगे मँज़िले-मकसूद तक,

जब तक ना आओगे तुम तो मैयत हमारी राह तकेगी तुम्हारी । 

कहीं ऐसा ना हो ,कि तुम आओ और हमारा वक्ते-रूख़सत हो ,

रूह भटकेगी फिर हमारी , ग़र रह जाऐगी दिल की आस अधुरी.....प्यास अधूरी!


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