आते रहा करो
आते रहा करो
आते रहा करो शहर हमारे
ना जाने किस गली के किस मोड़ पे मुलाक़ात हो जाए ।
बरसों से ये गलियां राह तकती हैं तुम्हारी ,
थकी -थकी नींदे मेरी और ख़ाली सुबह भी राह तकती है ।
बैचैन रातों का , बेज़ार सुबह का सफ़र ये मेरा रोज़ का है ,
लिए नैयनों के चिराग खड़ी हूँ आशा की मुँडेर पर ,
ना जाने कब मेरे अश्कों का धुँधलका हटे तो तुम्हारी छवि नज़र आ जाए शायद ।
खोई - खोई रहती हूँ आजकल हर पल,
मेरी आँखो से मेरे दिल की तिशनगी नज़र आने लगी है ।
कितनी लचीली थी ये दिलों की डगर,
ना जाने क्यों सिकुड़ गई अब ,
ज़रा इक कदम तो बढ़ाओ खत्म हो जाऐंगे सब फ़ासले ।
कभी तो आजाओ पास बैठो पल दो पल मेरे ,
मेरा ना सही अपना ही हाले-दिल सुना जाओ ।
ज़िद है हमारी भी एहदे-वफ़ा निभाऐंगे मँज़िले-मकसूद तक,
जब तक ना आओगे तुम तो मैयत हमारी राह तकेगी तुम्हारी ।
कहीं ऐसा ना हो ,कि तुम आओ और हमारा वक्ते-रूख़सत हो ,
रूह भटकेगी फिर हमारी , ग़र रह जाऐगी दिल की आस अधुरी.....प्यास अधूरी!

