आसमान
आसमान


बादलों पर घर नहीं बादलों से परे जाना था
आज न बादल है ना आशियाना
है तो बस परिजनों की अभिलाषा।
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पहले बादल फिर बादलों के टुकड़े दिखे
कभी राहों में उलझते तो कभी राहों को उलझाते मिले
ये टुकड़े थे कि सिर्फ़ शोर का सामान बने।
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आसमान ने धरती की झांकी सजाई है आज
स्याह -सफेद टुकड़ों ने कई आकृतियां बनाई है आज
कभी रेगिस्तान की गर्मी तो कभी पर्वतों की ठंड महसूस कराई है आज।
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