संदीप सिंधवाल

Abstract Inspirational

4.0  

संदीप सिंधवाल

Abstract Inspirational

आशा का परचम

आशा का परचम

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विधा - कुंडलियां


।।१।।

आस का परचम लहरा, उपजे एक विचार।

जला दिया हृदय भीतर, दूर कीजे विकार।।

दूर कीजे विकार, दुखी पड़ा जहां सारा।

उम्मीदों की लौ ही, दिलाता एक सहारा।।

कहे कवि 'सिंधवाल', हौसला तब होवे पास।

इक आस्था जगे मन, हिय जगी हो एक आस।।


।।२।।

जहां जगमगाएगा, जब होवे रात्रि नवम्।

प्रकाश के विश्वास से, मिट जाता सब भ्रम।।

मिट जाता सब भ्रम,दिखता राहों उजाला।

विपदा की जंग में, त्याग दीजे सब भाला।।

बैर मिटा 'सिंधवा'ल', बैर का अब वक्त कहां।

यारी भी जिएगी, दूरी राखी हो जहां।।


।।३।।

दीया के उजाले से, आस्था का होत सृजन।

अंधमय वाटों में, मिल जाते कहीं भगवन्।।

मिल जाते कहीं भगवन्, बस एक ही चेतना।

महामारी न हो कभी, जग नाहि सहे वेदना।।

कहे 'सिंधवाल' मित्र, सजगता बिन कौन जिया

हौसला राखे मन, जला के आस का दिया।।



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