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Rajeev Kumar

Abstract Inspirational

4  

Rajeev Kumar

Abstract Inspirational

आस

आस

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टूटी आस 

टूटी आस 

आस टूटी 

लेकिन उपवास की तरह नहीं 

बल्कि आजीवन प्यास की तरह 


दिलाशा न करते अगुवाई अब 

इक्छाएं अब पग बढ़ाते नहीं

ये पुष्प है प्रास की तरह 


भावनाओं का चीर हरण 

मन लुभाने के खोखले वादे 

अब छल सकते नहीं 

सब ख़तम हुआ आस की तरह 


प्रयत्नों से प्राप्त हुआ जो 

वस्त्र संतोष से लिप्त

अनुभव के वस्त्र से धकी नग्नता 

जिसके धागे असली हैं कपास की तरह।


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