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अधिवक्ता संजीव मिश्रा

Tragedy

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अधिवक्ता संजीव मिश्रा

Tragedy

आपकी रुख़सत में. .

आपकी रुख़सत में. .

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दिल बर्बाद होगा जमाने में,

तू आबाद किसी बहकाबे में।

जब हुश्न ढल जायेगा,

फिर नहीं कोई प्यार जतायेगा,

दिल से चाहोगी जिसे,

वक्त पर वही लौट कर आयेगा।

सोच कर देखो,

क्यों खुद को बर्बाद करता हूं,

दिल से सच्चा प्यार है,

इसलिये तो याद करता हूं।

कोई शिकवा नहीं है,

तू शौक से भुलाले,

दिल मानता नहीं है,कि

तुझे प्यार की जरुरत नहीं है।

याद रखना हुश्न वाले,

हांड मांस चमड़ी पर लोग,

 प्यार जताने नहीं आते,

सजदा करना दिल वाले,

सच्चे आशिक साथी बनते,

जिस्म की प्यास बुझाने नहीं आते।

जिनके लिये आज तुमने,

यूं ही ठुकराया है जीवन में,

वो हबीब ए दिल न बनेंगे,

हुश्न को जिसने गले लगाया है।

बहुत खूब दगा करने वाले,

आखिर धूंड लिया हुश्न का पुजारी,

अब न कहना जफा करने वाले,

मदहोश ही रहना रात जहां गुजारी।

समझ न पाया कभी जिंदगी में,

पैसा और हुश्न को लोग समझते हैं,

आज समझ पाया हूं जिंदगी में,

हम पागल ठहरे प्यार को पूजते हैं।

अमन ए हुश्न ही देगा चैन ,

तुम्हें अब जिंदगी में सनम,

हम तो काबिल ही न रहे,

तुम्हें कुछ देने को सनम।

उल्फत से प्यार में,

इतना तो बता दीजिये,

हम जिये या मर जायें,

आपकी की कशिश में,

रोयें या पागल हो जायें,

आपकी रुखसत में।

इतना तो करोगे प्यार के पंछी,

प्यार की निशानी को संभाले रखना,

खुश रहो सदा अपने दामन में,

खून से भरी मांग को सजाये रखना।



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