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Nand Lal Mani Tripathi

Inspirational

4  

Nand Lal Mani Tripathi

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आम समाज का मर्द

आम समाज का मर्द

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मर्द को दर्द नहीं दर्द

कायर कमजोर का दामन।

जिम्मेदारी का बोझ लिये जीता

जाता सुख दुःख से नाता।।  


कही पिता कही भाई 

रिश्तों की दुनिया में कुछ खोता

पाता जाता।।

रिश्तों की चक्की में पिसता 

रिश्तों की आरजू अरमानो का बोझ उठाता।।

करता जतन हज़ार पैसे चार कमाता

दो रोटी के सिवा हक में कुछ नहीं आता।।


बेटी बेटों की फरमाईश शिक्षा दीक्षा

आकांक्षाओं के आकाश

तले अवनि पे चलता जाता।।

थक कर घर जब आता सबकी

उम्मीदों का दाता।

माँ को चिन्ता बेटे की पत्नी को

परमेश्वर की हर मन के भवों चेहरे

का विश्वास जीवन के तमाम दर्द छुपाये

खुद को मुस्कान से पुलकित रखता।।


पुरुष पुरुषार्थ गृहस्थ जीवन 

मर्म, मर्यादा का मतलब, महत्व कहलाता।।

चाहे जो भी तूफां आये ,चाहे जो

दुस्वारी हो शांत सरोवर मन में

उठती लहरों का स्वयं साक्षी 

बंद जुबां सब सहता जाता।।

बचपन माँ बाप का यश गौरव 

थाती कुल चिराग का लौ बाती

जवाँ जिंदगी लम्हों की ख़ुशियाँ 

आशा लाती।।


संघर्षों का जीवन राहों में कभी

निखरता कभी पिघल चलते

समय काल की रौ में बहती जाती।।

रिश्ते नातों की दुनिया में पैदा

रिश्ते नातों से ही बिछड़ता जाता

माँ बाप का दुलारा अपने ही कंधे

पर माँ बाप को शमशान ले 

जाता।।


कभी काल क्रूर कसाई उसके

अरमानों का गला घोटाता

फिर भी जीता जाता।।

चाहत की होली जलती जीवन

फिर भी नई आस्था के संग

जीवन का दायित्व निभाता।।


बेटा था माँ बाप की आँखों का

तारा राजदुलारा बाप बना दादा

नाना रिश्तों की दुनिया की

परम्परा निभाता।।


कभी समाज के वहशी दरिंदों से

पाला पड़ जाता प्रतिकूल

काल को मान सिर झुका कर

आगे बढ़ जाता ।।         


यही सत्य है

किसी राष्ट्र के आम समाज के

पुरुष मर्द का कायर कमजोर

नहीं कर्तव्य दायित्व की धारा में

टकराहट से दर किनार बहता

जाता चलता जाता बहता जाता।।


सुबह की लाली जैसा बचपन

दोपहर के शौर्य सूर्य सा जवां जज्बा

ढलते शाम जैसा चौथापन

रात्रि के अंधेरों में खो जाता।।


रेंग रेंग कर जीता जीवन दर्द

ज़ख्म के कितनी साथ लिये माटी

का इंसान आम रिश्तों नातों के मध्य

दो गज ज़मीन पर चिर निद्रा में सो जाता

रिश्ते नातों की ही यादों का हिस्सा ही रह जाता।।



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