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Nand Lal Mani Tripathi pitamber

Abstract Action Inspirational

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Nand Lal Mani Tripathi pitamber

Abstract Action Inspirational

विरसा मुंडा कथा

विरसा मुंडा कथा

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कौन कहता है क्रांति को चाहिये कारण बहाना क्रांति धर्म, कर्म, कर्तव्य, दायित्वबोध के उत्साह उमंग का है तरन्नुम तराना!!

जज्बे का जूनून, जज्बातों के रिश्तों-रीतियों, प्रीति-परम्परा की अक्षुण्णता पर जीना मरना मिट जाना!!

जूनून आग है, चिंगारी है, मशाल है, दुनिया में मिशाल का मशाल हैअपनी हस्ती की हद, जमीन से आसमान से आगे!!

जहाँ के नए सूरज-चाँद की हैसियत की गर्मी, ताकत से तक़दीर की इबारत लिखने का आगाज़, अंदाज़ के जांबाज़ से वक्त अपने बदलने की करवट लेता!!

वक्त अपने निरंतर प्रवाह में उठते-गिरते, अपने कदमों की ताकत के लिए इंतज़ार करताखुद से गुहार करता, खुद में खुदा का इज़ाद करता, जहाँ में खुद का खुदाई इज़हार करता!!

दुनिया में इंसान को इंसान से मोहब्बत, तकरार की टंकार की गूँज की गवाही देता अडिग चट्टानों का तपना, सूरज की गर्मी से, जंगल-वृक्षों ने झेला मौसम की अंगड़ाई को फिर निश्चिन्त भाव से, फिर भी टीके हुए दृढ़ता से, अपने मकसद, मंज़िल, स्वाभिमान के इंतज़ार में!!

आएगा मतवाला, चट्टानों की गर्मी की ज्वाला सा, जंगल के जज्बात लिए रणबांकुरा कोई निश्चल निश्चय निराला सा, उनकी हस्ती की मस्ती का रचने वाला अध्याय नया युग में अपनी हस्ती की हद निश्चय करने वाला समय, सत्य की इच्छा और परीक्षा का परिणाम, इबारत लिखने वाला!!

गुलामी की पीड़ा को हरने वाला, सन् अठ्ठारह सौ सत्तावन की आज़ादी के संघर्षों को बेरहमी से कुचल चूका था अपने अत्याचारों से हाहाकार मचाने वाला!!

चाह और निराशा के बादल में आशा की चिराग कभी प्रज्वलित हो, बतलाती भारत का वर्तमान, भविष्य को है खास कुछ गढ़ने वाला!!

बिहार की पावन भूमि के कण-कण में थी ज्वाला, आदि वासी भी भारत में इतिहास का रचने वाला!!

गौड़, संथाल, मुंडा, स्वाभिमान पर मर-मिटने का, भारतीय है भारत वाला!!

संघर्षों का जीवन, संघर्ष संस्कृति, संस्कार को जीने वाला!!

अपनी धुन, मकसद का मतवाला, त्याग, तपस्या, बलिदानों का काल कर्म रचने वाला!!

तक़दीर की इबारत खुद लिखने वाला, अपने मकसद की राहों को खुद चुनने वाला, जहाँ की शान में तारीख लिखने वाला!!

विरला व्यक्ति, पुरुष, महापुरुष, इंसान, इंसानियत का ईमान, वक्त को मोड़ने वाला!!

वक्त के आईने में नए काल-कलेवर का पराक्रम, पुरुषार्थ, बिरसा मुंडा, मानवता के युग का मानव जैसा भगवान!!

विधाता ने कुछ दिया या नहीं, भाग्य, भगवान ने कुछ दिया या नहीं, से गाफिल नहीं भगवान से शिकवा-गिला नहीं, न भाग्य को तौहीमत, जिंदगी की हर सांस, धड़कन में मकसद की मंज़िल का लम्हा-लम्हा!!

माँ सुगना मुंडा पर भगवान मेहरबान, उनकी कोख ने दिया जन्म भारत का अभिमान

पंद्रह जनवरी, सन् अठ्ठारह सौ पचहत्तर को फौलाद इरादों की औलाद!!

इतिहास, शौर्य, स्वाभिमान की माटी, क्रांति जहाँ की संस्कृति है, जीवन, जननी, जन्मभूमि को समर्पित है जन-जन का संस्कार!!

अहिंसा परमो धर्म के अवतरण, आगाज़ की माटी, घर-घर बौद्ध बिहार, भारत की गौरव गाथा का प्रदेश अध्याय!!

छोटा नागपुर पठार, जिसके जर्रे-जर्रे में बसती भारत की खुशबू की खास पहचान का सौभाग्य!!

करमी हातु रचते-बसते, उति हातु, इतिहास पुरुष बिरसा मुंडा, जिनकी स्वाभिमान संतान

आदिवासी, जंगल-पर्वत का वासी, सृष्टि के प्रेम, संताप के प्राणी, जिसके साथी, जीने का अंदाज़ निराला, भय-भयंकर काल से नित्य निरंतर पाला!!

दृढ़ता, साहस, संघर्ष ही सुबह, शाम, दिन, रात, जीवन, बिना युद्ध भूमि के मातृभूमि पर जीवन जीने का संग्राम!!

कठिन चुनौती का जीवन, आदिम मानव, आदिवासी जन का जीवन, नित्य निरंतर, अविरल, अविराम!!

मानवता की आदि संस्कृति का शौर्य सूर्य, उति हातु, वनवासी की शक्ति ज्वाला का चिराग, मशाल

बचपन में पहला गुरुकुल, शिक्षा का मंदिर, विद्यालय, सल्बा गाँव

नित-नित बढ़ता बचपन, वक्त की अपनी रफ्तार, ऊदी हातु का चाई बासा ठौर!!

नया छूटा सल्बा गाँव, गुलाम मुल्क की न अपनी भाषा, न कोई ध्वज, पहचान!!

शासक की भाषा अंग्रेजी ही शिक्षा और लम्हे-लम्हे की शान!!

सन् अठ्ठारह सौ चौरासी, प्रकृति के तांडव से मचा हाहाकार, महामारी, अकाल से जन-जन था बेहाल!!

उतिहातु का नन्हा, कोमल मन, देख द्रवित था, समाज की दुर्दशा और देश मौन, बेहाल!!

नौ वर्ष के किशोर मन में व्यथा, हलचल, बहुत शोर, अंगार!!

सुलगते मन में जज्बे की ज्वाला, काल कराला, वक्त, विवशता की दासता को तोड़ने को बेचैन!!

दहशत का शासन, क्रूरता से दमन कर रहा था, आजादी के उठते कदम, हाथों सर कभी सर कलम कर देता, कभी सलाखों के पीछे दबा देता आवाज़!!

अक्टूबर, अठ्ठारह सौ चौरासी, मुंडा, आदिवासी, नौजवानों पर क्रूरता का कहर, मुकदमाअठ्ठारह सौ पचासी में हजारीबाग अदालत ने बेवजह सजा सुनाई दो साल!!

उतिहातु का मन, बचपन से ही प्रतिशोध में धधकती ज्वाला, आँखों में अंगार!!

ताकत का फौलाद, इरादों का चट्टान, माँ भारती का अभिमान, धरती बाबा, नाम, दुनिया के विश्वास का नया पहचान!!

धरती बाबा ने सन् अठ्ठारह सौ सत्तानवे से शुरू किया, भारत के अपमान के प्रतिशोध का नया अनुष्ठान!!

आवाहन कर, देश के अस्मत की, एकत्र किया मुंडा, नौजवान!!

मात्र चार सौ, बिरसा, नौजवान, अगस्त, अठ्ठारह सौ सत्तानवे में खूंटी थाने पर धावा बोल, आजादी के युद्ध का किया शांखनाद!!

तांगा नदी का तट, आज भी है गवाह, बिरसा के नेतृत्व का, उनके वीरता, शौर्य का

अठ्ठारह सौ अठ्ठानबे का भारत के इतिहास का, आदिवासी, वीर सपूतों के नाम, अंग्रेजों के घमंड को चकनाचूर किया, किया शर्मसार, परास्त!!

शर्मसार की हार से, अंग्रेज गए बौखलाए, बच्चों और औरतों का किया कत्लेआम!!

वनवासी, आदिवासी, आज़ादी के दीवानों, परवानों को किया गिरफ्तार!!

उन्नीस सौ अंठानवे में डोम्बारी पहाड़ियों पर, बिरसा ने मुंडाओं, आदिवासियों की महासभा में गर्जना!!

जागा मुंडा वीर, ज्वाला और खौलते खून की गर्मी का, एक-एक शूरवीर!!

चौबीस दिसंबर, अठ्ठारह सौ निन्यानवे को क्रांति वीर बिरसा, लिए हाथ में क्रांति की मशाल!!

हथियारों में आदिवासी परम्परा के हथियार, तीर-कमान, तलवार, कटार।!

सेनापति बिरसा, युवा ओज, तेज, क्रांति का कान्ति-पुत्र, आदि संस्कृति का जोश, उमंग, उत्साह।!

कूद पड़े युद्ध में, कुछ वनवासी, आदिवासी युवा साथियों के संग,जीतेंगे या मर जाएंगे का संकल्प लिए साथ।!

युद्ध बहुत कठिन था, केवल हौसला, हिम्मत का था साथ।!

सामने दुश्मन था विकराल, फिर भी हार न मानी,झुक जाना मुंडाओं की शान न मानी।!

लड़ते-लड़ते शहीद हुए, गिनती जिनकी आसान नहींकु छ को क्रूर दमन के शासन ने ग्रिफ्तार किया,चालीस को आजीवन कैद, छह को सजा वर्ष चौदह की,कुछ को तीन-पांच साल का कारावास दिया।!

बिरसा ने हार न मानी, फिर से मुंडा संघर्ष को जिंदा करने की ठानी।!

जंगल-जंगल फिर क्रांति की मशाल के विश्वास में,अपनी लड़ाई और विजय का, मानव मसीहा बिरसा मुंडा को

तीन मार्च, सन् उन्नीस सौ को अंग्रेजों ने ग्रिफ्तार किया।!

बिरसा पर कैद में क्रूरता, दमन का दौर चला,धीरे-धीरे बिरसा मुंडा जीवन के अंतिम पग का सफर,कैद में आत्म-साथ किया।!

न टूटा, न झुका, न आत्म-ग्लानि का भाव,वीरों की परम्परा के स्वाभिमान से,नौ जून, उन्नीस सौ को महापरिनिर्माण किया।!

भारत के इतिहास में, उतिहातु धरती बाबा, बिरसा मुंडा,लेंगे जीवन का नाम नहीं, मात्र चौबीस वर्ष के जीवन में,अपने जीवन मूल्यों के वर्तमान को नया इतिहास दिया।!

आदि मानव, आदि संस्कृति का शूरवीर, बिरसा मुंडा,माँ भारती के आँचल का धन्य धारिहर हैं।!

दुनिया में कर्तव्य, दायित्वबोध का समय, काल, भाग्य, भगवान की व्याख्या का स्वागत सर्वोत्तम है।!

बता गया दुनिया, जकड़ नहीं सकता कोई जंजीरों में,लाख चुनौती भी नहीं रोकती राहों को, संकल्पों में हो विश्वास।!

मकसद और इरादों पर दृढ़ता से चलना,हासिल करना मंजिल को, थक, हार नहीं जाना।!

मर-मिटने का जज्बा हो, जीत के जज्बे का जूनून,संसाधन ज्यादा हो या कम, पराक्रम, पुरुषार्थ के लिए मतलब नहीं,पुरुष के होने का, उतिहातु अर्थ बताता धरती बाबा।!

दोनों का युग-पथ, प्रकाश की प्रेरणा है, बिरसा मुंडा।!

बिरसा के जन्म, जीवन का मूल्य यही है,युवा ओज का आकर्षण, धैर्य, धीर, वीर का आभूषण,

क्रांति, कर्म, धर्म, अर्थ, सत्य, युवा वेग।!

नायक, युवा कमान के तीर की धार, युवा चेतना का संवाहक।!

जनजाति, जंगल, पहाड़ों की संस्कृति, सीमित संसाधन, जीवन संघर्षों का नाम।!

घड़ी, पल, प्रहर, दिन, रात, निरंतरता, प्रकृति की परीक्षा का जीवन नाम,न शिकवा, न शिकायत, वनवासी लड़ता रहता जीवन संग्राम।!

बिरसा मुंडा, आदि संस्कृति का प्रभा, प्रभाह,युगों-युगों तक भारत की पीढ़ी-दर-पीढ़ी अक्षुण होता,समृद्ध, प्रेरक, पुराण पुरुषार्थ।!


- नन्दलाल मणि त्रिपाठी, पीताम्बर, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश!!


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