आलोचना में शालीनता
आलोचना में शालीनता
देखिये !
कविता
ही नहीं
सारी विधाएं
हमें प्राकांतर
से कुछ
कहती है !
कोई नसीहत की
बातें खुलके
करने से
बुरी लगती है !
कोई आवेग में
आके कुछ
बोल जाता है !
शिष्टाचार के
परिधियों को
लांघ जाता है !
उसे तत्क्षण
जो टोकेंगें !
उसे यदि
आप रोकेंगें !
वो धारा रुक
नहीं सकती !
सुनामी की
लहर थम नहीं
सकती !
बात हमको है
बतानी तो
ध्यान हो !
समय सही
वक्त का
अनुमान हो !
आज कोई
आपकी
सुनता नहीं !
वश में कोई
आपके
रहता नहीं !
सन्देश हम
कविता से
दे सकेंगे !
सीधी बातें
उनको
ना कभी
कह सकेंगे !
बस इस विधा
को जान लें,
नब्ज को
पहचान लें,
सीख देते ही रहें,
कविता या
लेखनी लिखकर
प्राकांतर रूपेण
अपनी कहें !