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Lakshman Jha

Abstract

3  

Lakshman Jha

Abstract

आलोचना में शालीनता

आलोचना में शालीनता

1 min
348


देखिये !

कविता

ही नहीं

सारी विधाएं

हमें प्राकांतर

से कुछ

कहती है !


कोई नसीहत की

बातें खुलके

करने से

बुरी लगती है !

कोई आवेग में

आके कुछ

बोल जाता है !


शिष्टाचार के

परिधियों को

लांघ जाता है !

उसे तत्क्षण

जो टोकेंगें !

उसे यदि

आप रोकेंगें !


वो धारा रुक

नहीं सकती !

सुनामी की

लहर थम नहीं

सकती !


बात हमको है

बतानी तो

ध्यान हो !

समय सही

वक्त का

अनुमान हो !


आज कोई

आपकी

सुनता नहीं !

वश में कोई

आपके

रहता नहीं !


सन्देश हम

कविता से

दे सकेंगे !

सीधी बातें

उनको

ना कभी

कह सकेंगे !


बस इस विधा

को जान लें,

नब्ज को

पहचान लें,

सीख देते ही रहें,

कविता या

लेखनी लिखकर

प्राकांतर रूपेण

अपनी कहें !


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