आकर्षण का बोझ
आकर्षण का बोझ
आकर्षण बोझ सा लगता है
और हंसी विज्ञापन सी।
हंसी जाने कितने तनाव
और विकर्षण को
अंतहकरण में
समेटे
आधुनिक बाजार में
माल से लेकर
घर के दरवाजे तक
चहलकदमी कर रही है।
आकर्षण का सम्मोहन भी
कागजी निर्माण पर
भब्य सा दिख रहा है
और जीवन इस भब्यता के
आगोश में बन्दी दिख रहा है।
भला हो परमात्मा का
जो ऐसे में भी
चेहरे स्वाभविक हंसी
ओर जीवन में
आकर्षण का
भारहीन एक नया
संस्करण प्रदान कर रहा है।