Surendra kumar singh

Abstract

4  

Surendra kumar singh

Abstract

आकर्षण का बोझ

आकर्षण का बोझ

1 min
281


आकर्षण बोझ सा लगता है

और हंसी विज्ञापन सी।

हंसी जाने कितने तनाव

और विकर्षण को

अंतहकरण में

समेटे

आधुनिक बाजार में

माल से लेकर

घर के दरवाजे तक

चहलकदमी कर रही है।

आकर्षण का सम्मोहन भी

कागजी निर्माण पर

भब्य सा दिख रहा है

और जीवन इस भब्यता के

आगोश में बन्दी दिख रहा है।

भला हो परमात्मा का

जो ऐसे में भी

चेहरे स्वाभविक हंसी 

ओर जीवन में

आकर्षण का

भारहीन एक नया

संस्करण प्रदान कर रहा है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract