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प्रवीन शर्मा

Romance Fantasy

4  

प्रवीन शर्मा

Romance Fantasy

आखिरी सलाम

आखिरी सलाम

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जब से तूने देखा, कोई फूल माली का ना रहा

जिसे देखो वो अपनो को छोड़ तुझे अपना बता रहा


हर मजमे हर महफ़िल में जिक्र तेरे जलवो का है

क्यों अपने आसपास बागियों का शहर बसा रहा


बचपना था तो खुद दरवाजे से झांकना फितरत थी

इस उम्र में मुझसे पर्दे का पहरा बिठा रहा


पहले तो दूर के सपने पास बैठकर देखता था

अब साथ चलने को अम्मी की मनाही जता रहा


मुझे पता ही नहीं लगा तू कब बदल गया

अब सब कुसूर मेरी नजर का बता रहा


ऊंची नीची पगडंडी में मुझे थाम यूँही दौड़ता था

क्यों अब ऊंच नीच का डर मुझे दिखा रहा


तू हँसे तो आदत तेरी मैं मुस्कुराऊँ भी तो बुरा हूँ

इंसाफ की देवी की जय,क्या मिसाल बना रहा


खोटा हूँ, तो पहले से, और नहीं तो अब भी नहीं

क्यों खुद को दुनिया जैसा दोगला दिखा रहा


लड़की हो तो क्या मेरी जिंदगी की महाजन हो गई

पूछ कर करना है सब, जैसे तुम्हारा उधार सा रहा


बिन मांगे, जवानी तुम पर आई, तो मुझ पर भी

दोस्ती तोड़नी होगी, इसमें ऐसा क्या रहा


अगर तू नहींं तो लंबी उम्र का क्या करूँ मैं

तू खुश रहे सदा, ले, आखरी सलाम मेरा रहा।


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