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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance Classics Fantasy

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance Classics Fantasy

आजकल हालात कुछ उल्टे उल्टे से

आजकल हालात कुछ उल्टे उल्टे से

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आजकल दिनमान कुछ उल्टे उल्टे से लगते हैं

हमारे दिल के मेहमां हमसे रूठे रूठे से लगते हैं


ना आंखों में कोई चमक है और ना गालों पे सुर्खी

फीकी मुस्कुराहटों से ये होंठ झूठे झूठे से लगते हैं 


कभी दिल की धड़कनों से ही पहचान लेते थे हाल

सरगम की लय ताल के वे तार टूटे टूटे से लगते हैं 


कभी बादशाहत थी इश्क की दुनिया पे जिनकी

वही आज फकीरों की तरह लुटे लुटे से लगते हैं 


हमारी हर बात जिन्हें जान से प्यारी होती थीं 

आज हमारे अल्फाज उन्हें अटपटे से लगते हैं 


ऐसे भी दिन थे जब दीवाना था शहर जिनका 

आज अपने ही घर में वो पिटे पिटे से लगते हैं 


कभी आसमान में भी चमकता था नाम उनका

आज वही सुनहरे अक्षर मिटे मिटे से लगते हैं।


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