आज़ादी की रक्षा के लिये
आज़ादी की रक्षा के लिये
आज़ादी की रक्षा के लिये
कन्धे पर बन्दूक लिये स्वतंत्रता सेनानी
काली रात्रि में अश्व पर सवार
अकेला ही निकल पड़ा है,
कोई सन्देश देने दूर जगह पर
और अपने साथियों से मिल
क्रान्ति का बिगुल बजाने।
पराधीनता की बेड़ियों में जकड़े देश को
मुक्त कराने के लिये
दिए कितने ही बलिदान
जान हथेली पर लिये
निकलते थे वीर
देश को स्वतंत्र कराने के लिये।
न परवाह की जान की
न चिन्ता की परिवार की
एक ही लगन एक ही लक्ष्य
कि देश को स्वतंत्र कराना है
अपना सुख त्यागना है
और देश का हित साधना है।
ऐसे ही वीरों की तपस्या फल लाई है
और देश को विदेशी शासन से
उनके साहस ने मुक्ति दिलाई है,
ऐसे वीरों को शतशः नमन है
अपने प्राणों को संकट में डाल
हम सबको आज़ादी दिलाई है।