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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Inspirational

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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Inspirational

आजादी का जश्न

आजादी का जश्न

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सोच रहा हूँ आजादी का मैं भी जश्न मनाऊँ क्या ??

एक रोज के लिए खुशी से झूमू नाचूँ गाऊँ क्या ??


लिए हाथ मे एक तिरँगा देश भक्ति का परिचय दूँ ।

इस भारत की गौरवशाली अमर शक्ति का परिचय दूँ ।


मैं भी भारत माता की जयकारों के नारे बोलूँ ।

राष्ट्रभक्ति के और क्रांति के बोल बड़े प्यारे बोलूँ ।


कलम उठाकर देशभक्ति की ऐसी अलख जगाऊँ मैं ।

हर भारतवासी की आखों को पल में धो जाऊँ मैं ।


नेताओ के साथ राष्ट्र की चिंता पर खो जाऊँ क्या..

पुनः राष्ट्र हित के मुद्दों की ज्वाला को भड़काऊँ क्या..??


किन्तु सोंचता हूँ ऐसा करने से क्या हासिल होगा ।

एक रोज भारतवासी बनने से क्या हासिल होगा ।


कल फिर से मानवता खूनी पंजों की प्यासी होगी ।

संबिधान की गरिमा ऊँचे महलों की दासी होगी ।


कल सड़कों पर पड़े तिरंगे पैरों ने कुचले होंगे ।

देशभक्ति के बोल स्वार्थ की भाषा ने बदले होंगे ।


फिर भारत माता की जय, कहने पर लोग भिड़ेंगे भी ।

देश गीत गाने पर धर्मो के संघर्ष छिड़ेंगे भी ।


फिर हाथों में पत्थर लेकर बच्चे शोर मचायेंगे ।

उनकी खातिर देश भक्त भी सड़कों पर आ जायेंगे ।


फिर आतंकी सर्प दूर से भारत को फुफकारेगा ।

फिर अपनों को जयचन्दों का झुंड तमाचे मारेगा ।


फिर भारत का सहनायक भी खलनायक बन जायेगा ।

सत्ता छिनते ही भारत को कपटी आँख दिखायेगा ।


क्या ऐसी ही आजादी को वीर भगत ने सोचा था ?

क्या सुभाष ने अंग्रेजो से ऐसा भारत छीना था ?


विश्वगुरू ने क्या ऐसा भी बाना कभी चुना होगा ?

क्या गाँधी ने चरखे से ऐसा ही देश बुना होगा ?


सोंच रहा हूँ दो दिन की आजादी का क्या मतलब है ।

वीरों की कुर्बानी की बर्बादी का क्या मतलब है ।


ऐसी राष्ट्रभक्ति भी क्या जिसमे कोमल आभास न हो ।

त्याग तपस्या और समर्पण का सच्चा विश्वास न हो ।


ऐसा देशभक्त भी कैसा जो मजहब में अंधा है ?

जिसके लिए देश मंडी है, देशभक्ति भी धंधा है ?


जिसे शहीदों की कुर्बानी का अपमान अखरता है ।

जो हँसते हँसते मिट्टी के लिए प्राण दे सकता है ।


जो जीवन भर इस मिट्टी का कर्ज चुकाता रहता है ।

एक नागरिक होने का भी फर्ज़ निभाता रहता है ।


जो भारत की गरिमा का सच्चा हितकारी होता है ।

वहीं तिरंगे को लहराने, का अधिकारी होता है ।।



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