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आज़ादी हो गई इतनी सस्ती

आज़ादी हो गई इतनी सस्ती

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बूंदी का एक लड्डू और दिन भर की देशभक्ति

यक़ीन नहीं होता आज़ादी हो गई इतनी सस्ती


महज झंडा फहरा लेने से फर्ज़ अदा नहीं हो जाता

जोशीले गानों से मिट्टी का क़र्ज़ अदा नहीं हो जाता


सही मायने में इस आज़ादी का मतलब क्या है ?

किसी को इससे कोई मतलब नहीं, यही समस्या है


मैं ये नहीं कहता कि जश्न मनाना गलत है

मगर इस आज़ादी की बहुत बड़ी कीमत है


जिसे चुकाने से पहले हर बंदा हज़ार बार सोचता है

सिर्फ मैं ही क्यों, बस यही ख़याल मुल्क़ को तोड़ता है


साल में एक दिन वतनपरस्ती दिखाने वालों, सुन लो ये

इस दिखावे के बजाए देश के लिए सच में कुछ करे दिल से


खूब खुशियां मनाएं, चाहे घी के दिये जलाएं

पर उन शहीदों की क़ुर्बानी, हम भूल ना जाएं


सिर्फ दो दिन नहीं, पूरे साल ये जश्न चलता रहे

दिन दूनी रात चौगुनी, तरक्की वतन करता रहे।


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