आजाद: थे या हैं??
आजाद: थे या हैं??
वह भी एक दौर था,
जहां ईद की सेवइयां, और
दिवाली की मिठाईयां सेकुलर न होती थी।
होली हर भेदभाव धर्म जाति से मुक्त होती थी॥
उमंग थी, तरंग थी,
ठहाकों से हंसी बुलंद थी।
चप्पा चप्पा, नाके नाके, हर गली गली में
एक से एक परवानों की झुंड थी॥
काटते थे हम अपने बैर को,
जब जाते थे एक साथ सैर को,
सुकून से भरी आबादी थी...
क्या पता कि वो कैसी आजादी थी
जहां हर सुबह आरती की घंटी, अजान के बाद आती थी॥
और-आज एक दौर है,
जहां हम, हम से ही, हमारा हक मांग रहे हैं।
धर्म मांग रहे हैं, जात मांग रहे हैं..
बात बात में इंसाफ मांग रहे हैं॥
गली-गली, नाके नाके पे, चप्पा चप्पा छान के
मेरी धर्म की जय और तेरी धर्म की वय मांग रहे हैं।
कलमा दौहरा रहे हैं।
आयतें सुना रहे हैं।
रहीम की खुशी के लिए
रमजान में...
राम को सता रहे हैं।
पाप-द्वेष, घ्रणा से प्रकट ये,
सूक्ष्म जाती बनके
बल-बलाते हर वक्त ये,
कौम में, कौम से ही पूछें...
आप कौन ये?
आजादी की आग लगा के,
न जाने कहां विलुप्त ये,
बर्बरता ही पहचान है इनकी,
चार सौ बार गोद के बताया है,
हाय रे! मनुष्य न जाने तूने,
कौन से कौम को पाक बनाया है।
