रब से "माँ" है रब मेरी
रब से "माँ" है रब मेरी
मैं हिंदू, तू मुसलमान है, मगर
'मां' का ना कोई ईमान है
जब मैं था छोटा, तो था अंजाना
बड़ा हुआ तो ये जाना
'मां' की ही शरण में है, स्वर्ग का खजाना,
मैं था दीवाना जो असल, प्यार को ना पहचाना
ढूंढा हर गलियों में पर, तेरे आंचल को ना जाना
ये अल्लाह ! भी वही है।
ये शिव भी वही है॥
जिसके आगे किसी की ना चली है,
मौत को चीर के, तूने मुझे पाला 'माँ'
मगर यह दुनिया वही है,
जहां हैवान की कमी है,
यहां इंसान हैं खोटे..
जहां अपनों में ही, एक जंग सी बनी है।
कोई घर से है छूटे, तो कोई घर में ही है झूठे...
इतनी सी बात समझ तू मेरे बेटे॥
झूठा टाइम खाके, तुझको ही सुनाते, यहाँ
कोई सीना तान की जिऐ, तो कोई मांग के जिऐ
कोई अपनी आन में जिऐ, तो कोई दान पे जिऐ
मगर तू जहां भी हो वहां, नेक इंसान बन के जिए
मुझको ना है जानना, ना ही मुझको समझाना, मां
यह जिंदगी है एक ड्रामा, जिसे जीके है दिखाना..
यहां ना है कोई गॉड और ना ही है कोई रामा
इन सबसे ऊपर 'तू' है
ये सबने जाना और है ये माना॥
