Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Amit Kumar

Abstract Classics Fantasy

4.0  

Amit Kumar

Abstract Classics Fantasy

आज बरसों बाद

आज बरसों बाद

1 min
209


आज बरसों बाद ये सुबह देखा 

जैसे रोते को कहीं हँसता देखा।


दिन रात बीते और बीते महीने भी,

एक मुद्दत में आज आईना देखा।


सब भूले थे रोटी-वोटी के चक्कर मे,

भूख तो थी नही, जब आखिरी सपना देखा।


लालसा दिल मे थी कि कुछ तो कर लूँ मैं

पूरा हुआ सब, फिर भी अधूरा देखा।


बचपन से जवानी और बाद उसके भी,

रोज़ मर मरके भी खुद को जीता देखा।


समझे सदा सब, पर नासमझी ही रही,

अक्सर देर में खुद को समझते देखा।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract