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Raksha Gupta

Inspirational Others

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Raksha Gupta

Inspirational Others

आइना

आइना

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कुछ कथित नहीं, मैं व्यथित नहीं, 

अंतर्मन में कैसी यह आकुलता... 

देख 'आइना' सोचूँ मैं किंचित, 

प्रतिबिम्ब में कैसी धूमिलता... 


अतीत की हैं क्या स्मृतियाँ, 

या वर्तमान की ये कृतियाँ... 

कैसे संवरेगा भविष्य कहो, 

सुधरेंगी कैसे हठी त्रुटियाँ... 

'आइने' को साफ करूँ कैसे, 

दिखती नहीं कहीं मलिनता... 

फिर जाने क्यों दिखती मुझको, 

प्रतिबिम्ब में कैसी धूमिलता...


अवसादों का कहीं वास न हो, 

जो भूल गयी, कुछ खास न हो... 

मैं याद करूँ उन कटु लम्हों को, 

कहीं उर में उनका वास न हो... 

'आइना' कहे मुझसे पल पल, 

अब साफ करो मन की कटुता... 

समझ गयी क्यों दिखती मुझको, 

प्रतिबिम्ब में ऐसी धूमिलता...


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