आईने
आईने
आईनों की बारिश हो रही है।
लेकिन ये टपकते आईने टूटते हैं ही नहीं,
ना ही बिखरता है कांच इनका।
आप चाहो न चाहो, आइए नहाते हैं।
वे आपको समझाएंगे कि
हर आईना आपके लिए है, आप हैं उसमें।
लेकिन...गलतफहमी बिना टपके टूट जाए
तो ही बेहतर,
क्योंकि...इन आईनों में आप नहीं,
सिर्फ कुर्सी है।
कुछ आईने दोहराएंगे जो कुर्सी कह रही।
कुछ आईने अक्स कुर्सी का उलटा दिखलाएंगे।
सच कहूँ...यह बारिश तो सच्ची है।
और आईने सभी झूठे।