माँ दुर्गा, उग्र और ऊँची
माँ दुर्गा, उग्र और ऊँची
देवताओं और राक्षसों की प्रतिस्पर्धा में,
खड़ी हैं माँ दुर्गा, उग्र और ऊँची।
दसों हाथों में हैं सूर्य सी कृपा-वीरता,
दीप सरीखी आँखों में दया है देखी।
किरणें ज्ञान की चमकती हैं दमकते भाल पर,
सिंह सवारी करतीं, जिनकी प्रतीक है शक्ति।
उग्र भी है माँ वो, है दयालु भी,
रक्षक भी है, पालक भी है, है शैलपुत्री।
हर भय से पार लगाए जिनकी प्रार्थना,
भव्यता हो वहां, जहां उनकी उपस्थिति।
जागृत जोत उनकी है अखंड सी शक्ति,
शरण में शरणागत की आँखें आँसू से सींची।
जो कोई भी माँ की शरण है जाता,
दुख से मुक्ति, सुख की युक्ति, है वो पाता।
जीवन की राहे हों आसान हैं जातीं।
खड़ी हैं माँ दुर्गा, उग्र और ऊँची।