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Namrata Saran

Inspirational

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Namrata Saran

Inspirational

आह्वान

आह्वान

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कर्तव्यपरायणता 

और ,जीवटता की मुख्यधारा ,

अन्तःपुर में सदा शून्य रही .

भावना के जुड़ाव में 

तिल-तिल घटी .

प्रतिबद्धता की बारम्बारता

ओढ़े हुए .

ढोती रही स्वयं को.

 

किन्तु, मिला क्या?

मुठ्ठी में रेत और 

आँखों में पानी ,

पुरस्कार मिले .

स्नेह और सम्मान नहीं 

दुत्कार और तिरस्कार मिले.

कब तक?आखिर कब तक?

पुरुश्क्षेत्र में प्रेम खोजू ,

मारीचिका की भांति .

 

नहीं. अब और नहीं ,

आज,मैं एक स्त्री ,

आह्वान करती हूँ,

त्याग दिया मैंने वह अन्तःपुर ,

अब जुडकर स्वयं से 

ये आशंका सदा के लिए त्यागी ,

कहीं बदल न दी जाऊं मैं, 

सिलवट भरी चादर की भांति....!

  


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