आहत
आहत
कभी तुम्हारे तीखे शब्दों से,
कभी तुम्हारे असभ्य व्यवहार से,
झेल अक्सर आहत हो जाती हूँ मैं।।
कभी तुम्हारे ख़ामोश रहने से,
कभी तुम्हारे बेवज़ह बोलने से,
तो कभी मेरी बात ही ना सुनने से,
मन ही मन आहत हो जाती हूँ मैं।।
कभी परिवार के सदस्यों से,
कभी लोगों के बेवज़ह सवालों से,
कभी उन बातों में हाँ में हाँ मिलाने से,
अंतर्मन में कुढ़ आहत हो जाती हूँ मैं।
कभी मान सम्मान ना मिलने से,
कभी सरेआम नज़रअंदाज़ करने से,
कभी मेरे अपनों पर लांछन लगाने से,
रोष में बौखला आहत हो जाती हूँ मैं।