आह! वर्षांत...!!!
आह! वर्षांत...!!!
देखते-ही-देखते
नामालूम किस तरह
ये वर्ष २०२४
खत्म होने को है...
कितने सपने देखे होंगे
हम सबने,
कितने सपने बुने होंगे
अपने-अपने...
ये तानाबाना
ज़िन्दगी का
यूँ ही
बुलबुले की तरह
हवा में
उड़ गया...!
नववर्ष २०२५ का
आगमन होगा...
हम सबको फिर
एक नई उम्मीद का
काफिला बनाने का
साहस देगा...!
हमें विश्व शांति की
अदम्य चाह है...!
चहुं ओर बस
महात्मा गांधी जी की
अहिंसा की
जयजयकार हो...!!
न कोई धर्मांध हो,
और न कहीं धर्मांतरण...
ये जन्म जो
एक बार मिला,
जीवनशैली में
ईमानदारी की
निर्मल धारा
बहती रहे...!
