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Ram Chandar Azad

Classics

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Ram Chandar Azad

Classics

आगमन-प्रस्थान

आगमन-प्रस्थान

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मैं दिसम्बर हूँ वह जनवरी है।

वह आती है तो मैं जाता हूँ।।

अलग अलग होकर भी

पास पास का रिश्ता है।

जिसे वह निभाती है तो

मैं भी निभाता हूँ।।

वह आती है तो मैं जाता हूँ।।


मेरी ठिठुरन को वो समझती है।

इसीलिए तो कुछ कुछ

ठिठुरन वो चुरा लेती है।

मैं अंत हूँ तो वह शुरुआत है।

मुझमें आधी रात है तो

उसमें भी आधी रात है।

दोनों मिलकर भी

एक नहीं हो पाते हैं।

ये कैसी मुलाकात है?

दुनिया उसके लिए मुस्कुराती है।

तो मैं भी मुस्कुराता हूँ।।

वह आती है तो मैं जाता हूँ।।


रिश्ते बड़े अजीब होते हैं।

कभी रुलाते हैं तो कभी हँसाते हैं।

साथ छूटता है तो मन ही मन

तड़प के रह जाते हैं।

एक तरफ मैं अभागा।

टूटता है प्रेम का धागा।

क्या हुआ यदि मैं नहीं संग आता हूँ।

अपने सपने तुमको सौंप जाता हूँ।।

वह आती है तो मैं जाता हूँ।।


दूर करता है समय का फासला

एक पल हमको ज़ुदा करके चला।

नाच, गा कर के विदाई देते मुझको।

और स्वागत कर रहे देखो तुम्हारा।

मन विकल है।

अब मिलूंगा फिर

बरस के अंत में

खुशियाँ का अहसास छोड़ जाता हूँ ।

एक याद बस यही दे जाता हूँ।।

अलविदा अलविदा इक साल बाद

फिर मि...लूँ...गा...


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