आग
आग
आज जो तुम दे रहे हो
बिना माँगे ही
आपने मन से
लज्जा और अपमान का दर्द।
इसे दर्द न समझो
क्योंकि यह एक अँगार है
राख से दबी शांत जल रही
अँगार है
और तुम्हारे लिए यह
अनाम रोग है।
मेरा भी वक्त आएगा
राख से दबी अँगार भी
पहाड़- पर्वतों की सुखी पत्ती
खोज ही लेगी .
तब मंद वायु भी
साथ देंगे।
तब धीरे-धीरे जल उठेगा
धू-धूकर आग।