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Abhilasha Chauhan

Abstract

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Abhilasha Chauhan

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आए हैं ऋतुराज वसंत

आए हैं ऋतुराज वसंत

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लो आ गए ऋतुराज वसंत,

हवा में घुलता है मकरंद।

फूल उठी है सरसों पीली,

वसुधा लगती नई-नवेली।


पुष्प खिले हैं डाली-डाली,

भ्रमर करें उनकी रखवाली।

तितली उड़ती रंग-बिरंगी,

कोयल ने फूँकी सारंगी।


वृक्षों ने किया नव श्रृंगार,

प्रीत में लतिका बैठी हार।

ऋतुओं के राजा हैं आए,

खुशियों संग साथ में लाए।


बहने लगी बयार बसंती,

प्रकृति भी हुई है फुलवंती।

प्रेम की बहती है रसधार,

फागुन, फाग के संग फुहार।


उड़ता है रंग और गुलाल

राधा लाल-लाल लिए गाल,

राधा-कृष्ण गोपी औ ग्वाल।


खेतों में फसलें मुस्काई,

झूमें कृषक फसल घर आई।

कवि छेड़ता अब मीठी तान,

कविता की खिल उठी मुस्कान।


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