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Ashish Srivansh

Abstract

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Ashish Srivansh

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आदमी बुलबुला है

आदमी बुलबुला है

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आदमी बुलबुला है,

इक फ़ूंक में उड़ जाएगा!

मत बैर कर ऐ आदमी,

है नहीं तुझको ये लाजिमी!

मन तुम्हारा मनचला है,

तन तुम्हारा चंचला है!

आदमी बुलबुला है!


ज़िन्दगी ज़लज़ला है,

इसमें हर कोई बह चला है!

ये एक तनहा सफर है,

इसमें कहाँ कोई संग चला है!

आदमी बुलबुला है!


खुदगर्ज सी है ज़िन्दगी,

हमदर्द है कोई नहीं!

बुलबुले-सी है ज़िन्दगी,

देर तक टिकता नहीं!

ठहराव इसमें होता नहीं,

बिखरी हुई है ज़िन्दगी!

सूरज की तरह उदय होता है,

पर शाम ढले ढल जाता है!

आदमी बुलबुला है,

इक फ़ूंक में उड़ जाएगा!!



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