"नर" "एक महाकाव्य"
"नर" "एक महाकाव्य"
नर हो जो तो तुम नारी का सम्मान करो,
नर में ही तो हैं नारायण,
मत नारायण का अपमान करो।
जो जन्म लिए हो नर रूपी तो,
नारायण बन सारे जग का कल्याण करो।
नर हो जो तो तुम न नर पिशाच बनो,
पुरुषार्थ को न अपने ही तुम व्यर्थ करो।
वरदान बनो तुम अभिशाप नहीं,
सारे जग का कल्याण करो।
है तुममें पुरुषार्थ अगर जो,
पुरुषोत्तम बन सारे जग का उद्धार करो।
नर जो नारायण के अंश हो तुम,
मत करो नर शब्द को अपभ्रंश तुम।
करो पथ प्रशस्त इस जग का तुम,
सूरज की तरह इस जग का प्रकाश बनो तुम।
नर वो है जो नतमस्तक है,
नर वो है जो नभ रूपी इस जग का मस्तक है।
हो रहा है जो इस कलयुग में,
उससे झुकता शर्म से नर का मस्तक है।
हैं राम तुम्हीं में जिसमें पुरुषोत्तम और पुरुषार्थ समाया है,
हैं कृष्ण तुम्हीं में जिसने द्रौपदी की लाज बचाया है।
नर वो है जो नारी का सम्मान करे,
नर वो न है जो नारी का अपमान करे।
नर हो जो तो तुम नारी का सम्मान करो,
नर में ही तो हैं नारायण,
मत नारायण का अपमान करो।।