आधुनिक नारी..!
आधुनिक नारी..!
बदला है वक्त अब
नारी वो आगे बढ़ गई
तोड़ गुलामी की जंजीरें
देहरी वो लांघ गई।
बनाई अपनी अलग हस्ती
वक्त की धारा मोड़ कर
खुद के वास्ते कमर कस
अब जीने को तैयार हुई।
दुनियां देखेगी परचम उसका
वो प्रबल प्रचंड एक ज्वाला है
पुरुषत्व के घमड़ को चूर चूर
वो बनी दुर्गा का अंश है।
एक नया रूप और नया रंग
बेशक उसने अपना लिया
शर्म, हया और श्रद्धा का गहना
खुद्दारी में अपने मिला लिया।
पुरुषों के संग कंधे से कन्धा
मिला कर वो चलती है
हर क्षेत्र में लोहा मनवाकर
पुरुषों पर वो भारी है।
हर सांचे में ढल जाती
मोम बन वो पिघल जाती
ममता का आंचल लहराकर
सबको अपना कर लेती।
रखती ठोकर में दुनियां को
पारस वो बन जाती है
अंधकार में रोशनी बन
हर राह वो जगमगाती है।
जननी है वो इस ब्रह्माण्ड की
ना घुट घुट अब आंसू पीती है
सजग सबल सामर्थ्यवान बन
वो आधुनिक नारी है।
