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आ छुपा लें अपनी दोस्ती को

आ छुपा लें अपनी दोस्ती को

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आ छुपा लें अपनी दोस्ती को,

सबकी नज़रों से मेरे यार,

नज़र लग गयी गर इसे तो,

कम हो जाएगा हम दोनों का प्यार।


आ बना लें अपनी दोस्ती को,

सबसे अलग और बेमिसाल,

जिसमे चाह हो कुछ सीखने की,

देकर अपना “दिल” विशाल।


आ कहें अपनी दोस्ती को,

सागर और नदिया के ताल,

भंवर में कहीं डूब ना जाएँ,

इसलिए हाथ थाम कर चलते हैं चाल।


आ कहें अपनी दोस्ती को,

सपनों का एक रंगीन जाल,

ख़्वाबों में भी रहता हैं अक्सर,

एक-दूजे के वज

ूद का ख्याल।


आ कहें अपनी दोस्ती को,

दो अनजान मुसाफिरों का संसार,

जिसमे एक मुसाफिर गर थक जाता है,

तो दूजा उठाता है उसे

होकर सिंह पर सवार।


आ कहें अपनी दोस्ती को,

रंगों से सजा एक इन्द्रधनुष का तार,

जिसके हर तार में एक नया गीत है,

और हर रंग में एक सतरंगी बहार।


आ कहें अपनी दोस्ती को,

छलकते जाम जैसा एक “नशे” का खुमार,

जब भी चढ़ जाती है इसके “नशे” की खुमारी,

तब गिरकर ही मिटता है

दोनों का सुकून ~ए~ प्यार।


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