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GOPAL RAM DANSENA

Inspirational

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GOPAL RAM DANSENA

Inspirational

सुख दुख की पोटली

सुख दुख की पोटली

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रतन का बुढ़ापा अंतिम दौर में था, और उसमें उसके सारे लक्षण स्पस्ट दिख रहे थे I आंख को ढंकीती पलकें, चेहरे पर सिकुड़ी हुए झुर्री त्वचा कमर मुड़े हुए अपने हाथ में लाठी लिए वह अपनी एक अलग पहचान बना चुका था I

रतन की उम्र इतनी थी कि उसके बेटे बेटियों ने भी इस दुनियां को अलविदा कह दिया था, रतन अब खुद के उम्र का बोझ भी स्वयं उठा कर चलता था I समय निर्दयी होता है ये सब जानते हैं पर रतन के पास इसका पुख्ता प्रमाण था वह ऊपर वाले से हर पल यहीं कहता कि भगवान अब तो उठा ले पर भगवान हैं की उसकी पुकार सुनने का नाम ना लेते I रतन सबेरा होते ही अपने घर के दरवाजे पर रोज बड़ी मुश्किल से कटोरी लिये बैठ जाता उसमें अपने लिए खाना तक बनाने का सामर्थ्य नहीं बचा था, लोग जो उसको जानते थे, वे कुछ खाना दे दिया करते थे I जिससे उसका गुजारा हो जाता I

वह दरवाजे पर बैठे बैठे कभी कभी अपने अतीत में चला जाता, घर आंगन खुशियो से भरा हुआ I पत्नी की मुस्कान भरी चेहरा, चूडी और पायल की खनक नयी नयी साड़ी की महक को आज भी महसूस कर उसके बुढ़े आँखों से आंसू के धार निकल कर सिकुड़ी हुए मास के गड्ढे में बहने लगता मानो कोई नदी I अपने जीवन संगिनी को अपने सामने महसूस कर वह कहता मीरा मुझे अकेले छोड़ कर चल दी साथ निभाने का वादा को क्यों तोड़ दिया I

फिर उसके नजरों में अपने बेटे बेटियों का मस्ती भरी अठखेलियाँ सामने आ जाते, कोई कहता पापा मेरे लिए मिठाई लाना कोई कपड़े लाने को तो कोई कहता देखो ना पापा छोटू मुझे पीट रहा है,तब वह झूठ मूठ छोटू के पीठ को मारने का नाटक कर अपने ही हाथ को जोर से बजाते हुए कहता ये ले इसे भी मार रहा हूं अब खुश हो न I कोई कहता रामू ने मेरे खिलौनों को ले गया औऱ वह दूसरा नया लाने को कह कर मनाया करता।

वह सोचता जब दुनिया मे कोई किसी का साथ नहीं दे सकता तो लोग दुनियां बसा कर दुख मोल क्यों लेते हैं I क्या क्या सोचकर वह जीवन को भाग दौड़ में बिता दिया कभी फुर्सत से बैठ कर बात भी नहीं किया अपने पत्नी और बच्चों से , उसे लगता कि ये सब तो उनके लिए ही कर रहा है ताकि उनका जीवन सुखमय हो I पर कौन सा सुख जब वे ही नहीं रहे I उनके रहते तो समय नहीं दिया अब रोने से क्या फायदा, वह अपने आप को समझाता अब भाग अपने अपनों के लिए, ये बहाना से तो तुम उनसे दूर रहा और जब वे ही ना रहे सुने में अकेले निहार रहा है I जो सुख खोजा गठरी बांधते गया उस गठरी में तो सिर्फ दुख ही भरे थे I वह उस गठरी को टटोलते हुए खोजता की ये क्या भर लिया I

काश! वह समय फिर लौट आता पर समय तो समय है और समय के साथ सुख भी दुख में बदल जाती है I आज रतन सब देख पा रहा था I अचानक उसकी पोटली खाली हो गई उसमें सुख रहा ना दुख रहा उसके आंखों से माया का पर्दा हट गया था पर अफसोस उसकी आँखें फिर कभी ना खुल पायी इस निर्मोही दुनियां को फिर देखने के लिए I


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