सुपारी
सुपारी
सुपारी केवल पान में ही काम नहीं आती बल्कि यह "ऊपर" भेजने के काम भी आती है। पर अबकी बार हमने सुपारी का अलग ही उपयोग देखा। यहां सुपारी एनकाउंटर न होने देने काम में आ रही है। कहते हैं कि मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। मीडिया जनता की आवाज मानी जाती है। मगर मीडिया आजकल गैंगस्टर, अपराधियों, हिस्ट्रीशीटर्स को बचाने के लिए सुपारी लेने लगी है। कितनी तरक्की की है मीडिया ने। इसके लिए वह बधाई की पात्र है। मीडिया का सफर आजादी के आंदोलन से शुरू हुआ था और यह कारवां एक हिस्ट्रीशीटर को बचाने तक आ गया है। तो मीडिया इसके लिए बधाई की पात्र है या नहीं ?
हुआ यूं कि उत्तर प्रदेश में एक हिस्ट्रीशीटर है जो विभिन्न राजनीतिक दलों का लाडला था है और रहेगा। जब इन राजनीतिक दलों की सरकारें थी तब इस हिस्ट्रीशीटर की तूती पूरे राज्य में बोलती थी। तुष्टिकरण के वोटों के लिए इन राजनीतिक दलों ने ऐसे हिस्ट्रीशीटर्स को न केवल दामाद बनाया अपितु इन्हें नेता भी बना दिया। ऐसे हिस्ट्रीशीटर्स पर सौ सौ से अधिक केस दर्ज हैं मगर इन्हें न्यायालय से जमानत कैसे मिल जाती है यह सुप्रीम कोर्ट ही बता सकता है। हम जैसे तुच्छ प्राणी यह सवाल नहीं कर सकते हैं। हमारे ऊपर न्यायालय की अवमानना का केस चला कर कोई भी न्यायालय अंदर कर देगा तो हमें जमानत भी नहीं मिलेगी मगर ये हिस्ट्रीशीटर सौ सौ केस झेलने के बाद भी छुट्टे सांड की तरह घूमते हैं। शायद न्याय इसी को कहते हैं।
एक हिस्ट्रीशीटर जिस पर सौ से अधिक केस दर्ज हैं और जो इस समय जेल में बंद हैं ने अपने विरुद्ध गवाही देने वाले गवाह को सरेआम गोलियों से भुनवा दिया और वह इस मंजर को जेल में बैठे बैठे देखता रहा। ऐसे हिस्ट्रीशीटर का क्या ह्रस होना चाहिए ? इतना ही नहीं उसने दो दो पुलिस कार्मिकों को भी मार दिया। ऐसे दुर्दांत अपराधी को क्या पाला पोषा जाना चाहिए ? कोई भी यह नहीं चाहेगा कि ऐसे व्यक्ति को जिंदा छोड़ा जाना चाहिए। मगर मीडिया की बात ही कुछ और है। उसे जनता, कानून से कोई मतलब नहीं है, उसे तो अपनी जेब भरनी है। मीडिया के लिए अब पत्रकारिता कोई जज्बा नहीं रहा, अब शुद्ध रूप से पेशा हो गया है। जैसे चिकित्सा और शिक्षा भी पेशा बन गए हैं। पैसे के लिए ये सब कुछ भी कर सकते हैं।
औ
तो एक तपस्वी ने इन हिस्ट्रीशीटर्स को मिट्टी में मिलाने का बीड़ा उठा लिया। तपस्वी की प्रतिज्ञा रधुकुल की भांति होती है जो अवश्य पूरी होती है। उस भीषण प्रतिज्ञा को सुनकर वह हिस्ट्रीशीटर दर दर कांपने लगा क्योंकि उसे पता है कि ये तपस्वी कोई साधारण तपस्वी नहीं है। इसने बड़ों बड़ों को ठिकाने लगा दिया है। जिस गैंगस्टर से न केवल जनता बल्कि पुलिस भी भयभीत रहती थी उस गैंगस्टर के चेहरे पर पहली बार खौफ देखकर बड़ा सुकून मिला। हम तो यह दृश्य देखने के लिए न जाने कब से तरस रहे थे अब जाकर यह नजारा देखने को मिला है।
सुना था कि गैंगस्टर कहीं दूर रह रहा था इसलिए तपस्वी ने उसे अपने पास बुलाने के लिए अपने "दूत" भेजे। ये दूत अपने साथ एक विशेष प्रकार का "विमान" भी लेकर गये थे जिसमें उसे लेकर आने वाले थे। लोगों ने यह अफवाह उड़ाई थी थी कि तपस्वी का विमान अक्सर पलट जाता है। इस अफवाह से गैंगस्टर की जान हलक में आ गई। दूसरों की जान को जो कुछ नहीं समझता था, उसे अपनी जान अनमोल लगने लगी। वह जेल में बैठे बैठे सोचने लगा कि विमान को पलटने से कैसे रोका जाये ? इस संबंध में सोचने पर उसे मीडिया का ध्यान आया। जो मीडिया अपने देश के दुश्मन देशों का महिमा मंडन कर सकता है, मुंबई पर आतंकी हमले की लाइव रिपोर्टिंग कर के पाकिस्तान की मदद कर सकता है वह मीडिया पैसे की खातिर क्या नहीं कर सकता है ?
उसने जेल से ही मीडिया के पुराने मित्रों से संपर्क साथ लिया। इस पुण्य काम में उसकी मदद जेल के अधिकारियों ने की होगी क्योंकि इनके लिए भी पैसा ही माई बाप है, देश नहीं। मीडिया ने उस गैंगस्टर से सुपारी ले ली। मीडिया कुछ भी कर सकता है, उस पर कोई नियम कायदे तो लागू होते नहीं हैं। अब उस गैंगस्टर को बचाने की जिम्मेदारी मीडिया की हो गई। गैंगस्टर की "यात्रा" लाइव टेलीकास्ट होने लगी। अब देखते हैं कि तपस्वी कैसे विमान पलटवाते हैं ? ऐसा नहीं है कि तपस्वी केवल विमान ही पलटवा सकते हैं, वे कुछ भी कर सकते हैं। इसलिए सुपारी देते समय इस बात पर भी एग्रीमेंट हुआ कि गैंगस्टर पर किसी भी तरह का कोई आक्रमण नहीं होना चाहिये। इसके लिए कैमरा सदैव उस गैंगस्टर पर ही केन्द्रित होना चाहिए। मीडिया को इस पर क्या ऐतराज़ हो सकता था ? इसके लिए अतिरिक्त पैसों की मांग की गई। एक गैंगस्टर के पास पैसों की क्या कमी है ? लूट का माल खूब भरा हुआ है इसलिए सहर्ष बात मान ली गई। तो यह तय हुआ कि मीडिया तपस्वी के विमान के आगे और पीछे दोनों साइड चलेगा और पूरी यात्रा को लाइव टेलीकास्ट करेगा जिससे अगर तपस्वी के दूत कुछ गड़बड़ रना चाहें तो कर नहीं पायें। अगर फिर भी कुछ हो गया तो काल खींचने के लिए चैनल हैं ही।
हमारा परम सौभाग्य रहा जो हमने परम पूजनीय, प्रातः स्मरणीय, श्रद्धेय श्री श्री 1008 श्री गैंगस्टर महाराज को न केवल चढ़ते उतरते हुए देखा अपितु उन्हें "मूत्र विसर्जन" करते हुए भी देखा। वह वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है और सभी "दर्शनार्थियों" को दर्शन लाभ प्रदान करने के लिए उसे यूं ट्यूब पर "सुरक्षित" भी रखा गया है। कहते हैं कि इस दुर्लभ वीडियो को देखने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और सीधे स्वर्ग लोक का टिकट मिल जाता है। यह सब मीडिया की मेहरबानी से संभव हो सका। इस घटना से पंता चलता है कि इस देश का मीडिया कितनी मेहनत कर रहा है लोगों को स्वर्ग लोक की यात्रा करवाने में। उन फोटोग्राफरों को शत शत नमन जिन्होंने अपने कैमरे में इस "अविश्वसनीय" घटना को कैद किया। विद्वान कहते हैं कि ऐसी दुर्लभ घटनाऐं न जाने कितने युगों के बाद देखने को मिलती हैं। धन्य भाग हमारे जो हमें इस विचित्र किंतु सत्य घटना को देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
सुपारी के अनुसार वह गैंगस्टर सकुशल उस जेल में पहुंच गया जहां उसे पहुंचना था। मीडिया में खुशी का माहौल है कि आखिर उसने यह दुर्लभ कृत्य कर दिखाया और तपस्वी के मंसूबे पूरे नहीं होने दिये। सुपारी के पैसों से आज दारू चिकन पार्टी चल रही बताई।
भारत की वे बेटियां जिन्होंने विश्व बाक्सिंग प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक प्राप्त किये हैं, आज खून के आंसू रो रही हैं क्योंकि मीडिया पर जिन्हें दिखाया जाना चाहिए था उसकी जगह एक हिस्ट्रीशीटर को लाइव दिखाया जा रहा था। मेरी नज़र में यह दिन मीडिया के इतिहास में काला दिवस के रूप में याद किया जाना चाहिए।
