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भूख और अन्नपूर्णा

भूख और अन्नपूर्णा

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माँ, और कितनी देर, “हमें भूख लगी है”| दोपहर से कुछ नहीं खाया| बहुत भूख लगी है| हम आ जाये खाना लेने| “नहीं वहीँ बैठे रहो, जब बन जायेगा तब मैं खुद दे दूंगी”| माँ ने झुठी डांट लगायी | माँ बेमन से खाली हांड़ी में चम्मच फेरती रही और तब तक रोहन और निहाल सो गये|

          माँ बाहर आई और सोचने लगी नाम तो मेरा अन्नपूर्णा है, पर मेरे ही घर पर अन्न का एक दाना भी नहीं है| खाली पेट सोने का दर्द क्या होता है, ये मुझे पता है| अब तो इस महीने के एक दो दिन ही बचे हैं और अभी पैसों के लिए इंतजार करना होगा| सामने पड़ा राशन कार्ड भी मुहँ चिढ़ा रहा था| इतनी मुश्किलों से ये राशन कार्ड बनवाया था कि महीने का कुछ राशन तो मिलेगा| ना जाने कितने बिचोलियों को घूस देना पड़ा था, कितनी मिन्नतें की, ना जाने कैसे – कैसे ताने सुने और भाग – दौड़ अलग से, पर कुछ फायदा नहीं हुआ| सारा राशन ये बिचोलिये खा जातें है| हम ग़रीब- भुखे लोगों को कुछ नहीं मिलता, सरकार योजनायें तो लाती है पर अमल नहीं कर पाती है|

         अन्नपूर्णा के घर से कुछ दूर रिहाइशी इलाका है| वहां आज शादी है| अन्नपूर्णा सोचती है, यहीं जाकर कुछ काम मांग लेती हूँ| “ भैया, अंदर जाने दो न, मेरे बच्चे भूखे है”| कुछ बर्तन धो दूंगी ताकि कुछ खाने के लिए मिल जाये| अच्छा ठीक है, जाओ वहां| अन्नपूर्ण झट से चली गई| वहां उसने देखा 10-12 साल का लड़का बर्तन धो रहा था| अन्नपूर्णा उसके बगल में बैठ गयी और बर्तन धोने लग गई| उसने उस बच्चे से पूछा,” तुम्हारा नाम क्या है”? उसने कहा, “राजा”| अन्नपूर्णा ने पूछा, “तुम यहाँ बर्तन क्यों धो रहे हो”, इतनी छोटी उम्र से मजदूरी क्यों कर रहे हो? राजा ने कहा,” मेरे माँ - पापा ने ही मुझे ये काम करने को कहा है, ताकि कुछ और पैसे आ जाएँ” | अन्नपूर्णा ने पूछा,” तुम स्कूल जाते हो”? राजा ने कहा, “हाँ जाता हूँ”| उसके बाद अन्नपूर्णा और राजा ने बर्तन धोए और अन्नपूर्णा को चार घंटे के 200 रुपये मिले और एक प्लेट खाना| खाना तो अन्नपूर्णा ने बर्तन धोते वक़्त ही निकाल लिया था क्योंकि लोगों ने अपने थालियों में भरपूर खाना बर्बाद किया था| किसी ने पुरी, किसी ने मिठाई आदि| भगवान भी दो नेत्रों में फर्क करता है, किसी को इतना देता है और किसी को इतना सा भी नहीं| वाह रे तेरी लीला प्रभु!

        

अन्नपूर्णा जल्दी से घर लौटी और बच्चों को नींद से जगाकर भरपेट खाना खिलाया और बच्चों ने माँ को| उन्होंने उतना ही खाया जितनी भूख थी और अच्छे दिनों की आस में सब सो गये|


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