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Arunima Thakur

Tragedy

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Arunima Thakur

Tragedy

बारिश...आँसुओ की

बारिश...आँसुओ की

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        माँ मेरे जन्मदिन पर नया . . . खाना खाते-खाते मेरे नौ वर्षीय बेटे ने ना जाने कितने सामानों की सूची मुझे पकड़ा दी I मैं ने उसका माथा चूम कर बोला ठीक है जो भी तू चाहेगा। उसने भी पलट कर मुझे चूमा । मैं उसकी आँखों में अपना बचपन देख रही थी। हम जब भी कुछ फरमाइश करते वह कभी भी तुरंत पूरी नहीं होती थी। माँ चुमकर बोलती ठीक है इस बार फसल पर ला दूंगी । हमें तो नए कपड़े भी जन्मदिन पर नहीं फसल पकने पर मिलते थे, वह भी साल में एक बार I मुझे विचारों में डूबा देखकर मेरा बेटा खाना छोड़ कर उठने लगा । मैंने उसे पकड़ लिया ना बेटा खाना छोड़ना, अन्न की बर्बादी नहीं करते हैं। हम किसान है ना, यह अन्न तो हमारा भगवान है, हमारी आजीविका का सहारा। मेरा बेटा आश्चर्य से पूछता है माँ हम किसान हैं ? डू वी आर फार्मर ? पर पापा . . . . . I मैंने कहा तेरे पापा नहीं, मेरे पापा । जो भी हो अन्न की बर्बादी नहीं करनी चाहिए । वह तुनकते हुए बोला पर आज कितनी अच्छी बारिश थी । अपने भजिया (पकौड़ी) क्यों नहीं बनाई ? मैं क्या समझाती उसे कि इस बिन मौसम की बारिश में शायद मेरे पापा के खेतों में पानी भर गया होगा। तैयार अन्न खेत में पड़ा भीग रहा होगा । पापा फिर सिर पर हाथ रखकर बैठे होंगे। यह बारिश शायद उनकी आँखों से भी हो रही होगी । 


          यह बारिश भी अजीब चीज है ना, कहलाती तो किसान की दोस्त है पर गाहे-बगाहे किसान को रुला ही जाती है । बाहर बहुत जोर की बारिश हो रही थी । बाहर टीन पर पड़ती बारिश की बूंदों की छम छम और पनारी से गिरता पानी मुझे अपने साथ खेलने के लिए आमंत्रित कर रहे थे । मेरा बेटा तो कपड़े उतार कर पानी में भीगने भी लगा । मैंने हमेशा की तरह पहले पापा को फोन लगाया। हाल-चाल पूछे और पूछा यह बारिश खेतों के लिए अच्छी है या नहीं। पापा हमेशा की तरह धीर गंभीर स्वर में बोले बारिश हर किसान के लिए अलग-अलग भाव लेकर आती है। इस बार तो नसीब से मैंने अपनी सरसों कल ही बखार में रखवा ली थी पर तुम्हारे चाचा लोग का अभी भी खेत में ही पड़ा है । सब भीग गया । 


            बचपन के कुछ दिन तो यादों से मिटायें ही नहीं मिटते । वह दिन जब बारिश होने पर पापा मेरा और मम्मी का हाथ पकड़कर बारिश में भीगते हुए खूब नाचे थे क्योंकि बारिश समय पर आई थी। कुछ महीनों बाद ऐसी ही एक बारिश में जब मैं पापा को खींचकर ले जाने लगी तो पापा ने मुझे झिड़क दिया, काहे की बारिश ? पूरी खेती खराब हो गई । मेरा बालपन आज तक समझ ही नहीं पाया कि बारिश होने पर खुश होना है या दुखी । उसके बाद जब भी बारिश होती आस-पड़ोस के बच्चे खुश होते बारिश में खेलते, स्कूल में रेनी डे मिलता, खुशी मनाते पर मैं पहले पापा के पास जाती और पूछती पापा यह बारिश फसल के लिए अच्छी है या खराब । 


           कभी-कभी तो अच्छी बारिश भी किसान को रुला देती है। मुझे आज भी याद है वह दिन जब बाजार जाने के लिए मैंने रिक्शा किया था और रिक्शे वाले काका को बोला, "काका बड़े चौराहे पर विधि मार्केट पर रोक देना" । वह बोले, "बिटिया बता देना कहां रुकना है" । मैंने पूछा काका शहर में नए आए हो क्या ? वह बोले, "गांव से खड़खड़ा पर लदवा कर फूलगोभी लाया था । इस बार बारिश अच्छी थी तो फसल बहुत अच्छी हुई थी । थोक मार्केट में बेचने गया तो एक रुपए बोरी बिक रही थी । दस बोरी का दस रुपया मिला I वह ढुलवायी के लिए खड़खड़े वाले को दे दिया । अब घर खाली हाथ कैसे जाऊं , इसलिए रिक्शा चला रहा हूँ कि कुछ कमाई हो जाए। यह फूल गोभी जो हम पाँच रुपये की एक खरीदते हैं वह एक रुपए की बोरी ???? बताओ अच्छी बारिश अच्छी फसल भी किसानों को रुला देती है । 

            बचपन की कितनी ख्वाहिशें ऐसे ही बारिश की भेंट चढ़ गई । 

पापा साइकिल चाहिए । बारिश अच्छी हुई तो दिलवा दूंगा ।पापा इस साल तो बहुत अच्छी बारिश हुई थी ना । मेरी साइकिल आएगी ना । ना बेटा बारिश गलत समय पर हुई थी । तब से बीज सूख गए थे या कभी पौधे सूख गए थे । 


           हम किसान होते हुए भी हमारी पढ़ाई के लिए शहर में रहते थे । जब आस-पड़ोस के घरों में बारिश में भजिया बनता, हम पापा का मुँह देखते । क्या यह बारिश अच्छी है ? इसमें भजिया खा सकते हैं ? कभी पापा कहते अपना गेहूं तो कट कर आ गया था पर भूसा खलिहान में ही था। पूरा भूसा खराब हो गया । अब साल भर गैय्या भैंसों के लिए चारे की परेशानी हो जाएगी। चारा खरीद कर लाना पड़ेगा। इसी तरह से खरबूजे हो या आलू, सरसों हो या गेहूं बारिश किसी भी फसल को नहीं छोड़ती । शादी के बाद यहां आने पर जब किसानों की आत्महत्या के बारे में सुनती तो रोंगटे खड़े हो जाते । रात भर नींद नहीं आती । तब दिमाग में आता पापा जो बारिश में रात भर जाग कर बैठे रहते थे, वह न जाने कितनी मौतें मरते होंगे । 


            कभी-कभी बहुत बुरा महसूस करती कि ना जाने कौन सी घड़ी सायत में बचपन में मैंने पापा से फरमाइश की थी पापा सोने की चूड़ियां चाहिए । पापा ने भी लाड़ में आकर कहा था पहली बार, तेरी शादी पर ले दूंगा । मैं नादान कितनी खुश हो गयी थी। पहली बार पापा ने ऐसा नहीं कहा था कि फसल पकने पर ले दूंगा क्योंकि फसल पकने पर लाई जाने वाली कितनी सारी चीजों के वादे आज तक अधूरे थे । वैसे सोने की चूड़ियां कोई बड़ी बात नहीं थी। मेरे पापा कोई छोटे-मोटे किसान नहीं जमीदार थे अच्छी खासी बड़ी जमीन के मालिक पर दो बार की सीलिंग के बाद आखिर में चालीस बीघा खेत ही बचे थे | सीलिंग से बहुत पहले ही मेरे पापा ने उनकी जमीन पर खेतों के पास कुछ लोगों को बसा दिया था। वह सब लोग ही पापा के साथ अधिया पर काम करते थे। अधिया मतलब आधी फसल उनकी। मैंने बचपन में एक बार पापा को बोला भी था। बस आधी फसल में इन लोगों गुजारा कैसे होता होगा। पापा बोले बेटा इतना अनाज इन लोगों के साल भर के खाने के लिए बहुत है और फिर बाकी खर्चों के लिए यह जमीन भी है ना । उस पर यह लोग साग भाजी भी उगाते और बेचते हैं। पर अगर हम इन्हें आधे से ज्यादा दे देंगे तो बताओ अगले साल के लिए बीज कहां से लाएंगे । हमें कम से कम तीन साल के लिए बीज बचा कर रखने होते हैं कि कुछ खराब परिस्थिति हो तो बीज बोने भर को अनाज तो घर में होना ही चाहिए और फिर ट्रैक्टर, ट्यूबवेल, खाद डीजल इन सब का खर्चा भी तो हमें ही निकालना होता है। और तुम्हें मालूम है यह अनाज जो बाजार में बीस रूपये किलो बिकता है उसे खरीदार खेत से एक रुपया किलो उठवाता हैं। पापा तो आप सीधे मंडी में क्यों नहीं बेचते। पापा एक उमांस भरते हुए बोले जाने दो बिटिया तुम नहीं समझोगी। तब मैं छोटी थी फरमाइशे भी छोटी तो आराम से पूरी हो जाती थी। जैसे-जैसे बड़ी हुई, पता चला सच में सिर्फ खेती से गुजारा तो संभव है पर पढ़ाई लिखाई, फीस, किताबें इन सब के लिए पापा को कितनी जद्दोजहद करनी पड़ती थी। एक साल की याद है बहुत अच्छी बारिश हुई थी। आलू की फसल बहुत अच्छी हुई थी, बड़े-बड़े आलू । उस साल सब की फसल अच्छी हुई थी । तो ना तो किसानों को अच्छा दाम मिला ना ही कोल्ड स्टोरेज में रखने की जगह । उस साल के बाद से पापा ने आलू कभी नहीं उगाया।


            हां तो मेरी शादी पर भी बरखा रानी थोड़ा आगे पीछे हो गयी और आसमान से नहीं किसानों की आंखों से बरसी । शादी तो मेरी धूमधाम से हो गई, बस सोने की चूड़ियां रह गई । पापा हाथ जोड़ते हुए बोले, "बिटिया. . . "। मैंने पापा के हाथ पकड़ लिए, नहीं पापा नहीं चाहिए । बचपन का शौक था, नादानी मान लो , पर दिल पर मत लो पापा । अब मैं बड़ी हो गई हूँ। दिन गुजरते गए, मैं तो शायद भूल भी गई थी I पर पापा पैसे जमा करते रहे, भाई-बहन की पढ़ाई लिखाई इन सब खर्चों के बीच भी उन्हें मेरी चूड़ियां याद रही। शादी के कुछ दस सालों बाद पापा ने एक दिन फोन करके बोला इस बार राखी पर भाई को भेज रहा हूँ। कुछ चाहिए तो बोलना I मैं तो खुशी से जैसे पागल हो गई । राखी पर भाई आए इससे बड़ा तोहफा और क्या हो सकता हैं। नहीं पापा कुछ नहीं चाहिए । 

            और रक्षाबंधन से कुछ बीस दिन पहले मेरे पति का बहुत तगड़ा एक्सीडेंट हो गया। पाँच - छह : दिन अस्पताल में जीवन मृत्यु से जूझने के बाद आखिरकार वह हमें छोड़ कर चले गए। इनके जाने की सारी विधियां हो रही थी तो पंडित जी ने कहा कल बहू के मायके से फला फला सामान और सोने की चूड़ियां आनी चाहिए । मैंने भाई को बुला कर समझाया तुम इन सब सामान के लिए परेशान मत होना । बाजार से पचास रुपये की बेनटेक्स वाली चूड़ियां ला देना । भाई कुछ नहीं बोला सिर्फ मुझे गले लग कर रोता रहा। दूसरे दिन रक्षाबंधन था । इतने सालों बाद भाई आया था पर मैं त्यौहार नहीं मना सकती थी। पंडित जी आएँ। विधि शुरू हुई । भाई ने सब सामान पकड़ाया और सोने की चूड़ियां भी । फिर वह फफक कर मेरे गले लग कर रोने लगा। रोते-रोते बोला तुम्हारे लिए रक्षाबंधन का नेग लाया था। तुमने पापा से कभी बचपन में मांगा था। पापा ने भिजवाया था, पर यह सोने की चूडियाँ इस तरह से तुम्हारे पास आएगी यह नहीं पता था। पता होता तो शायद कभी लेकर नहीं आता। ना जाने कितनी बारिशों कि आस देख कर मनौती मानकर मेरे पापा ने यह सोने की चूड़ियां बनवाई थी । यह चूड़ियां मेरे जीवन में भी बारिश ले आई , आँखों से बरसने वाली, कभी ना बंद होने वाली बारिश I किसान की बेटी हूँ ना बारिश से तो जन्म जन्म का नाता है । 

अब यह वक्त बेवक्त की बारिश भगवान ने हमारे नसीब में ही लिख दी है। आँसुओं की बारिश ,जो पापा, मेरे व मेरे भाई की आँखों से बरस रही थी, अक्सर बरसती है और हमेशा बरसती रहेगी । 



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