मेरी हीरे की अंगुठी
मेरी हीरे की अंगुठी
कल इन्होंने मेरी सारी शिकायतें दूर कर दी, कैंडल नाइट डिनर और गिफ्ट में हीरे की अंगूठी... वाह ! मेरी तो खुशी का ठिकाना ही नहीं था। खुशी के मारे सातवें आसमान में पहुँच गई थी।
लेकिन तभी मेरे अंदर की गृहणी ने सर उठाया....."इतना मंहगा गिफ्ट लाने की क्या जरूरत थी, एक गुलाब ले आते फिर भी मैं खुश हो जाती।" ये भी कम नहीं थे, बोले ऐसी बात है तो लाओ मैं अंगूठी वापस कर देता हूँ और तुम्हारे लिए एक लाल गुलाब ले आता हूँ। "अरे अरे आप भी ना.... इतने प्यार से लाए हैं वापस थोड़े ना करेंगे।"
अंगूठी की चमक तो मेरी आँखों में दिख रही थी लेकिन अब कश्मकश ये थीं, कि कालोनी की सब सहेलियों को ये अंगूठी कैसे दिखाई जाए। खुद से बताऊँगी तो सब सोचेंगी कितना दिखावा करती है, खुद से वो पूछे तब मैं बताऊँ तो कोई बात हो,...और मुझे मौका मिल भी गया। इस शनिवार को कामिनी के घर किटी पार्टी है, सब रहेंगी ही वहाँ उनकी नज़र से कहाँ कोई नई चीज बच सकती है।
तो आ गया शनिवार मैं खूब अच्छे से तैयार हुई और अपनी हीरे की अंगूठी पहन कर पहुँच गई पार्टी में। आज तो मेरे कुछ अलग ही रंग ढंग थे। मैं कभी अपने बालों को कानों के पीछे करती, कभी पैरों पर हाथ के ऊपर हाथ रख बहुत स्टाइल से बैठती, कभी अपनी नेलपॉलिश ठीक करती, पूरे समय मैं अपनी अंगूठी के दिखावे में ही लगी रही। पूरी पार्टी खत्म हो गई लेकिन किसी ने भी अंगूठी के बारे में नहीं पूछा, घर आ कर अपने में ही बड़बड़ाए जा रही थी, "पक्का जल गई होंगी सब इसीलिए किसे ने सामने से नहीं पूछा,....मुझे भी क्या करना है मैं तो खुश हूँ जलने दो उन सब को।"
कुछ दिनों बाद मुझे एक और मौका मिला सब को अंगूठी दिखाने का हमें एक शादी में जो जाना था। वैसे आजकल समय तो ऐसा है नहीं की असली जेवर पहन कर शादी में जाया जाए, तो मैंने अपनी सब आर्टिफिशियल जेवर ही पहने, लेकिन मेरी हीरे की अंगूठी के मोह से मैं न बच पाई, और पहुँच गए हम लोग शादी में पूरे फंक्शन में मैंने दिखावे का कोई मौका नहीं छोड़ा। फंक्शन खत्म हुआ और रात में ही हम बाइक से घर वापस आने लगे, जैसे ही थोड़ा सुनसान रास्ता शुरू हुआ दो लोगों ने हमें रास्ते में रोक लिया और मेरी गर्दन पर चाकू रख दिया। उन्होंने हमसे सारा कैश और जेवर निकालने के लिए बोला, लेकिन जेवर तो सब आर्टिफिशियल थे और कैश भी ज्यादा नहीं मिला उन्हें हमारे पास से, इसलिए मूड खराब हो गया उनका और मुझ पर पकड़ मजबूत कर, वो इनसे और सामान माँगने लगे, ये भी डर के तुरंत ही बोल पड़े, ये ले लीजिए आप लोग हीरे की अंगूठी है, इसके सिवाय हम लोगों के पास अब कुछ भी नहीं है और प्लीज़ हमें जाने दें।
खैर किसी तरह से वहाँ से जान बचा कर भागे हम लोग और जल्द ही पूरी कालोनी में आग की तरह ये बात फैल भी गई। दूसरे दिन आने जाने वालों का तांता लग गया।
सब हमसे पूछते क्या हुआ, कैसे हुआ, कौन लोग थे, क्या क्या गया आपका और मैं सबको रो रो कर बताती, मेरी हीरे की अंगूठी ले गए मुए चोर और मन में सोचती, "बताओ अंगूठी दिखाने के लिए क्या क्या नहीं किया और अब सबको इस तरह से खबर देनी पड़ रही हैं उसके जाने के बाद।" लेकिन, इस घटना का मुझ पर जोरदार असर हुआ था।
दिनभर अपनी खाली उंगली को निहारती और अफसोस करती। मेरी ये हालत इनसे देखी नहीं जा रही थी, मेरे पास आए और मुझे सांत्वना देते हुए बोले तुमसे क्या छुपा है तुम तो हमारी हालत जानती ही हो। इतनी आमदनी कहाँ मेरी जो तुम्हे हीरे की अंगूठी ला कर देता, इसलिए तुम्हारा मन रखने के लिए आर्टिफिशियल अंगूठी ला कर दी थी, जो चली गई। भगवान चाहेंगे तो तुम्हें पक्का असली हीरे की अंगूठी ला कर दूँगा, इसलिए इतना अफसोस करना सही नहीं। मैं सोच में पड़ गई कि वे पहले सच बोल रहे थे, या अब।