सोने का सिक्का

सोने का सिक्का

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सुनो न अम्मा! क्या रेे बेटवा, कितनी बार तो बता चुकी हूं नहीं ला पाऊंगी तेरे लिए जूते। मेरे पास नहीं है पैसे, तू क्यू नही समझता मेरी परेशानी मंगलू। अम्मा मेरी बात तो सुनो स्कूल में रेस है इसीलिए तो जूते मांग रहा हूं और पता है रेस जीतने वाले को साइकल मिलेगी। सोच तो अम्मा साइकिल आ जाने से कितना फायदा होगा।

मंगलू " मै जो सुबह सबके घर दूध पहुंचाने पैदल जाता हूं उससे रोज स्कूल पहुंचने में देर होती हैं और देर से पहुंचने के कारण रोज मास्टर साहब से हाथ में चार छड़ी खानी पड़ती हैं उससे छुटकारा मिल जाएगा । स्कूल भी कितना दूर है ये टूटी चप्पल में तो मेरे पैर घिस जाते है । साइकल होगी तो बिना चप्पल के भी चला जाऊंगा। देख न अम्मा कितना भी कोशिश करूं लेकिन एक बोरा से ज्यादा भूसा नहीं लाद पाता सर पे, साइकल होगी तो आराम से दो बोरा ले आऊंगा अपनी गैइया के लिए। हैंडपंप से पानी लाने जाता हूं लेकिन कितनी भारी बाल्टी होती हैं एक बाल्टी से ज्यादा उठा ही नहीं पाता, साइकल होगी तो दो बाल्टी ले आऊंगा सोचो मेरा कितना समय बचेगा"। अम्मा " तो क्या करेगा समय बचा कर कौन सा तीर मार लेगा तू ? आठ साल का बित्ती भर का छोकरा अपनी अम्मा को पाठ पढ़ा रहा है"। चल जा बाज़ार से तरकारी ले आ जाके।

मंगलू उदास मन से बैठ था। करता भी क्या, बेचारी उसकी अम्मा थी भी बहुत गरीब क्या करती वो भी जब से उसके बाबू खत्म हुए बड़ी मुश्किल से गुजारा चल रहा था उसके घर का इसीलिए मंगलू जो सिर्फ आठ साल का था उम्र से ज्यादा मेहनत करता था और बड़ा भी ज्यादा हो गया था अपनी उम्र के हिसाब से।

तभी , ऐ मंगलू ! क्या है हुआ पप्पू और बिट्टू यहां क्या कर रहे हो तुम लोग। चल न नदी किनारे चलते है। मंगलू " क्या करना है नदी किनारे जा कर फालतू में समय की बर्बादी , मै नहीं जा रहा तुम लोग जाओ" । पप्पू " अरे चल मंगलू मछली पकड़ेंगे ये देख दीनू काका के पास से कांटा भी ले कर आए हैं मछली पकड़ने का। " अरे वाह! तो सही है मछली बनेगी तो तरकारी का खर्चा बचेगा " मंगलू मन ही मन सोचने लगा।

मंगलू और उसके दोस्त नदी किनारे पहुंच गए और पानी देखते ही तीनों पानी में कूद गए भले ही समय ने मंगलू को उसकी उम्र से ज्यादा बड़ा बना दिया हो लेकिन था तो एक बाल मन ही उसका और अपने बचपन के दोस्तों के साथ मिलकर खूब खेला वो और भूल ही गया अभी थोड़ी देर पहले उदास बैठा था घर में। नदी में खेलते समय मंगलू के पैर के नीचे कुछ गड़ा उसने पानी में हाथ डाल कर देखा तो वो एक सिक्का था मंगलू तो खेलने में व्यस्त था इसलिए उस समय ध्यान नहीं दिया बस अपनी पैंट की जेब में डाल लिया वो सिक्का। नदी में खेलते हुए समय तेज़ी से भागने लगा जल्दी जल्दी तीनों ने मछली पकड़ी और घर को भागे।

अम्मा भी खुश हो गई मछली देख कर अरे वाह मंगलू कितनी मछली ले आया तू तो आज तो पेट भर खाना खिलाऊंगी तुझे। अरे अम्मा वो तो नदी इतनी दूर है साइकल होती तो रोज चला जाता मै मछली पकड़ने। अम्मा गुस्साते हुए " फिर वही बात चुप हो जा अब"।

तभी मंगलू को याद आया उसकी पैंट की जेब में कुछ है ये देख अम्मा नदी में खेलते हुए मुझे क्या मिला। अम्मा ने सिक्का हाथ में लेते हुए बोला " ये जरूर वो नदी के ऊपर वाले पुल से किसी ने फेका होगा"। लेकिन क्यू अम्मा ? कुछ लोग फेकते है नदी में पैसे कुछ मुराद मांगने के लिए। मंगलू " लेकिन जब नदी में फेकने के लिए पैसे है उनके पास तो मुराद में क्या मांगते होंगे"। अम्मा " अरे पागल हमारे पास पैसे नहीं है तो हम मुराद में पैसे मांगते है लेकिन जिनके पास पैसे है उनके पास भी गम होते है जिसके लिए वह मुरादे मांगते है"।

अम्मा बड़ी ध्यान से देखती रही सिक्का उसे लग रहा था ये चमकीला सिक्का शायद सोने का है लेकिन वो भी कैसे जान पाती सोना देखा ही कितनी बार था उसने अपने जीवन में जो पहचान जाती। थोड़ा पत्थर पर घिसा सिक्के को लेकिन चमक कम न हुए उसकी। दूसरे दिन मंगलू और अम्मा बाज़ार में सुनार की दुकान पहुंचे। दुकान दार ने तो उन्हें देखते ही चार कोने का मुंह बना लिया। लेकिन जब अम्मा ने सिक्का दिखाया तो सिक्के की चमक उसकी आंखो में भी आ गई। सच में वो सोने का सिक्का था बस अब क्या था उसके बदले जो पैसे मिले उससे मंगलू के जूते आ गए और वह जूते पहनकर स्कूल की रेस में पूरी जान लगा कर दौड़ा और फिर रेस जीत कर मंगलू की साइकल आ गई।


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