आजकल बदले-बदले से हैं मिजाज़

आजकल बदले-बदले से हैं मिजाज़

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रात को बारह बजे सुधा जी ने अपने बेटे रवि के कमरे का दरवाजा खटखटाया। सुधा जी घबराई हुई आवाज में, "सुनो बेटा जरा अपने पापा को फोन लगाना तो, मेरे फोन से लग नहीं रहा।"

"अरे माँ! क्यूँ परेशान हो रही हो? ऐसा तो नहीं पापा पहली बार कहीं बाहर गयें हों? पहुँच गए होंगे।"

"अरे! नहीं बेटा एक बार लगा ले न कॉल, बात हो जाए तो मैं सुकून से सो जाऊँ।"

"अच्छा रुकिए, लीजिए बेल जा रही है।"

"हाँ, हैलो पहुँच गए सही से?"

"हाँ पहुँच गया।"

"तो फोन क्यूँ नहीं किया।"

"तुम्हारा फोन नहीं लग रहा था, कई बार किया।"

"अच्छा ठीक है सो जाओ, कल बात करना।"

पापा से बात करके माँ ने चैन की साँस ली। रवि कमरे का दरवाजा बंद कर के बेड पर लेट गया।

रीना, "क्या हुआ हो गई बात।"

"हाँ, हो गई। माँ भी पता नहीं, क्या हो गया है इन्हें उम्र के साथ बहुत ज्यादा घबरा जाती हैं। वह पहले तो नहीं थी ऐसी। पापा की तो नौकरी ही ऐसी थी बाहर आना जाना लगा ही रहता था। मम्मी अकेले सब संभालती लेती थी और कभी भी घबराती नहीं थी। लेकिन न जाने अब क्यूँ ऐसी हो गईं हैं, रीना।"

"हाँ! माँ, पापा के लिए अब ज्यादा परेशान रहने लगी हैं। कुछ दिनों पहले की ही बात है। मैंने माँ और पापा को चाय दी और गलती से पापा को चीनी वाली चाय दे दी तो माँ मुझ पर बहुत गुस्सा हो गईं। पहले तो वो ऐसा नहीं करती थीं। लेकिन अब ये भी है कि ज्यादा टोका टाकी नहीं करती हैं, ये भी मैं नोटिस कर रही हूँ। कुछ दिनों से बस पापाजी का कुछ ज्यादा ही ध्यान रहता है उन्हें।"

"वैसे पापा जी के स्वाभाव में भी थोड़ा परिवर्तन आया है। पहले माँ कहाँ आती जाती थी, उन्हें कभी उनकी कोई फिक्र नहीं हुई और अब तो माँ कुछ देर भी न दिखे तो तुरंत ढूंढ़ने लगते हैं," रवि ने कहा।

"अच्छा तो है, देखो माँ को दूर नहीं जाने देते अपनी नज़रों से इस उम्र में भी और एक तुम्हें देखो; मुझसे दूर जाने के बहाने ढूंढ़ते रहते हो।" रीना ने रवि को छेड़ते हुए कहा।

"कुछ सीखो अपने पापा से। दोनों रोज नियम से सुबह पार्क में टहलने जाते हैं, सेहत का ध्यान भी पहले से ज्यादा रखते हैं। और हाँ कल तो शाम को मम्मी-पापा के साथ बिट्टू को लेकर मैं भी पार्क में गई थी। वैसे तो मैं हमेशा पार्क में अपनी सहेलियों से बात करने में व्यस्त हो जाती हूँ और पापा जी बिट्टू को देख लेते हैं। लेकिन इस बार तो मुझे पता भी नहीं चला कब दोनों गायब हो गए और थोड़ी देर बाद हाथो में हाथ लिए टहलते हुए वापस आए।" रीना ने शरारत करते हुए कहा, "कहीं पापा जी पर वो वाली फिल्म बधाई हो बधाई का असर तो नहीं और जल्दी ही कोई नया मेहमान तो नहीं आने वाला घर में।"

"तुम भी रीना, ये क्या बातें कर रही हो," रवि ने चिढ़ाते हुए कहा।

"अरे अरे! गुस्सा क्यूँ होते हो। मैं तो बस मजाक कर रही थी।"

दूसरे दिन पापा जी घर वापस आ गए और माँ सुबह से ही पापा जी की राह ही तक रही थी। और जैसे ही पापा जी आए उनका चेहरा खिल गया। मैं रसोई में चाय बनाने गई तो माँ आ गईं बोलीं, "रहने दो, मैं चाय बनाऊंगी उनके लिए।"

मैंने माँ से मजाक करते हुए कहा, "पापाजी को आपके हाथ की चाय पीने का मन है क्या…" और वो शरमाते हुए चाय ले कर अपने कमरे में चली गई। और हॉल तक उनकी खूब हँसने की आवाजें आ रही थीं।

रात में रीना रवि से, "अच्छा एक बात बताओ, क्या माँ-पापा में शुरू से ही इतना प्यार था, क्यूँकि शादी कर के आए मुझे भी बारह साल हो गए लेकिन इधर एक साल से जबसे प्रिया, छोटी ननद की शादी हुई है दोनों का प्यार बहुत बढ़ गया है।"

"सही कह रही हो जब हम छोटे थे तो बहुत लड़ाइयाँ हुआ करती थी माँ-पापा की। कई-कई दिन बातें नहीं करते थे। लेकिन आजकल दोनों बहुत खुश रहते हैं। एक दूसरे की बहुत फिक्र किया करते हैं। शायद प्रिया की शादी की जिम्मेदारी पूरी करके वो थोड़ा आराम महसूस कर रहें होंगे। वैसे अच्छी बात है दोनों ऐसे ही रहें।"

दूसरी रात, "रवि सो गए क्या। उठो न।"

"क्या हुआ सोने दो न मुझे।"

"सुनो न हम जो इतने दिनों से बातें कर रहे थे, बदले-बदले से मिजाज़ के बारे में पापा-मम्मी के; लगता है आज मुझे पता चल गया है इसका कारण।"

"अच्छा क्या पता चला? वैसे परिवर्तन अच्छे हैं तो वजह भी अच्छी ही होगी।"

"नहीं ऐसी बात नहीं है। अच्छा तुम्हें कोई नीता आंटी याद है क्या?"

"अरे हाँ, मम्मी की पक्की सहेली थी। दोनों अपने सुख-दुख बांटा करती थी।"

"हाँ, वो आज घर आयीं थीं। वैसे दोनों माँ के कमरे में बातें कर रहीं थीं लेकिन रोने की आवाज सुन कर मेरा ध्यान उनकी बातों में चला गया। माँ, नीता आंटी को सांत्वना दे रहीं थीं, 'ईश्वर की मर्जी के आगे किसकी चली है संभालो खुद को। एक उम्र के बाद तो सब को जाना ही होता है। न जाने कब किसका बुलावा आ जाए।' फिर बातों ही बातों में पता चला, एक साल पहले नीता आंटी के पति का देहांत हो गया। अब वह अपने लड़के-बहू के साथ रहती हैं लेकिन सब अपने जीवन में व्यस्त हैं और वो बहुत ही अकेली पड़ गईं हैं। जब तक उनके पति जीवित थे। तब तक उनकी जिंदगी बच्चों के इर्द-गिर्द घूमती रहती थी। आये दिन

छोटी-मोटी बातों में मनमुटाव चलता था। कभी समाज कभी रिश्तेदार इन्हीं सब में उलझे रहे। कभी अच्छा वक्त नहीं बिताया साथ। और अब इस उम्र में जब साथी की सबसे ज्यादा जरूरत होती है तो वो अकेली रह गईं।

मुझे लगता है माँ-पापा को इस बात का एहसास हो गया है। अब इस उम्र में एक दूसरे को खोने का डर और ज्यादा बढ़ गया है। इसलिए दोनों अपने जीवन को जी लेना चाहते हैं। सच में कैसा एहसास होता होगा न उन्हें। अब जब उनकी जिंदगी की शाम हो गई है तो उस आने वाली अंधेरी रात जिसमें सब को एक दिन मिल जाना है, इसका एहसास उनके मन पर कितना ज्यादा गहरा होगा न। जब शादी होती है अपने जीवनसाथी के साथ जिंदगी का सफर शुरू करते हैं। कितने सारे पड़ाव, जिंदगी के उतार चढ़ाव, जिम्मेदारियाँ इन सब में हमें याद ही नहीं रहता कि एक दिन तो साथ छूट ही जाना है। और जब हम उम्र के इस पड़ाव पर पहुँचते हैं तो कितना डर लगता होगा। एक-एक पल भी इतना कीमती हो जाता होगा जब ऐसा लगने लगे न जाने कितना समय बचा है और समय है जो रेत जैसा हाथ से फिसला चला जाता है।" रीना ने रवि का हाथ अपने हाथों में जोर से पकड़ लिया और कहा, "बस एक वादा करो। हम दोनों भी ऐसा ही रिश्ता रखेंगे अपना, जैसा माँ-पापा का है।"


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