Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

दफ्तर में खून, भाग -7

दफ्तर में खून, भाग -7

3 mins
7.2K


 

गतांक से आगे-

अगले दिन भारी फ़ौज के साथ प्रभाकर ने अखबार के दफ्तर पहुंचकर इमारत को घेर लिया। किसी को भी अंदर बाहर आने की इजाजत नहीं थी। जब विनय प्रभाकर अपनी पूरी वर्दी में कार्यालय में दाखिल हुआ तब हर कोई अपना काम छोड़कर उसे ही देखने लगा। समीर जुंदाल अपनी टेबल पर बैठा कुछ लिख रहा था। उसने लिखना बन्द कर दिया और सशंकित निगाहों से प्रभाकर को देखने लगा। रविकिशन बिष्ट , अग्निहोत्री सर के ऑफिस में बैठा कोई फ़ाइल देख रहा था। चपरासी मदन दफ्तर के किचेन में कुछ काम कर रहा था। मालिनी अपने टेबल पर नहीं थी, वह वंदना के टेबल की बगल में रखी एक कुर्सी पर बैठी, वंदना के साथ कुछ खा रही थी। प्रभाकर ने कार्यालय में पहुँचते ही अपनी सर्विस रिवाल्वर निकाल कर हाथ में ले ली। यह देखते ही वातावरण में ब्लेड की धार जैसा पैना सन्नाटा पसर गया। प्रभाकर दृढ क़दमों से आगे बढ़ा और उसने चुपचाप समीर जुंदाल की कनपटी पर रिवाल्वर की नाल रख दी। वह सूखे पत्ते की तरह कांपने लगा।

 

"मैंने क्या किया सर ! जब जुंदाल बोला तो उसकी आवाज काँप रही थी।

 

तुम कल शाम रामनाथ पांडे को देखने गए थे ? प्रभाकर कठोर स्वर में बोला।

 

हाँ ! गया था, जुंदाल की रोनी आवाज आई।

 

वो मर चुका है, तुम्हारी कृपा से! प्रभाकर विषैले स्वर में बोला।

 

नहीं सर! मैं उन्हें क्यों मारूँगा , वे तो मेरे गुरु थे। जुंदाल अब सच में रो पड़ा।

 

देखो! नाटक करने से कोई फायदा नहीं। सच सच बता दो कि तुमने पांडे का कत्ल क्यों किया और शामराव द्वारा अग्निहोत्री का कत्ल किये जाने में तुम्हारी क्या भूमिका है ?

 

सर ! मैं अपनी माँ की कसम खाता हूं कि मुझे इस बारे में कुछ नहीं पता। मैं कल अस्पताल गया जरूर था पर केवल अपने गुरु सदृश्य रामनाथ जी को देखकर और ईश्वर से उनके स्वास्थ्यलाभ की प्रार्थना करके लौट आया था।

 

सुनो ! तुम मुझे विस्तार से पूरी बात बताओ, कहता हुआ प्रभाकर एक कुर्सी पर बैठ गया। उसने अपना रिवाल्वर वापस होल्स्टर में रख लिया। हाथ उठाये खड़े जुंदाल को भी उसने सामने एक कुर्सी पर बैठने को कहा। वंदना और मालिनी भी सामने ही बैठे थे। बाकी लोग इन सभी को घेर कर ऐसे खड़े थे, मानों सड़क पर मदारी का तमाशा देख रहे हों। प्रभाकर ऐसी कुर्सी पर बैठा था जिसमें वंदना की टेबल उसकी जद में आ गई थी। उसने टेबल पर रखा पेपरवेट घुमाते हुए कहा, अगर तुम्हारी कहानी मुझे जँच गई तो मैं तुम्हें निर्दोष मान लूंगा।

 

जुंदाल रोता हुआ अपनी रामकहानी सुनाने लगा। सभी आश्चर्यचकित से सुन रहे थे। प्रभाकर भी ध्यान से सुन रहा था और बेख्याली में टेबल के ड्रॉवर्स से भी खेल रहा था। उसने कई बार ड्रॉवर्स बंद चालू किये और धीरे से, उनमें से डॉक्टरों द्वारा पहना जाने वाला एप्रन और एक स्टेथोस्कोप निकाल कर टेबल के ऊपर रख दिया। यह देखकर वंदना शानबाग का चेहरा सफ़ेद पड़ गया। अगर उसका गला काटा जाता तो शायद रक्त की एक बूंद न निकलती। उसका रक्त मानो सूख गया था।

क्या वंदना ही कातिल थी? इस डॉक्टरी परिधान का उसकी दराज में होने का क्या मतलब था ?

 

पढ़िए, भाग -8 में


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Thriller