स्वर्ग का टोल नाका
स्वर्ग का टोल नाका
हमारे यहाँ अस्पताल स्वर्ग के रास्ते में पड़ने वाले टोल नाके हैं। बिना यहाँ का टोल चुकाए स्वर्ग या नरक में एंट्री नहीं मिल सकती। डॉक्टर, कंपाउंडर, नर्स, वार्डबॉय सभी अपने अपने हिसाब से टोल वसूली करते हैं। जो भी यह टोल चुकाने में टालमटोल करता है, उसकी बड़ी दुर्दशा होती है।हमारे पड़ोसी गोबरदास का एक हाथ टूट गया था तो आपातस्थिति में ये एक नज़दीकी अस्पताल में जाकर इलाज हेतु प्रस्तुत हो गए। मानवतावश डॉक्टर ने बिना एडवांस के पट्टी-वट्टी कर दी बाद में धन प्राप्ति में विलंब और गोबर दास की भाग खड़े होने की तैयारी देखते हुए बिल का भुगतान न होने तक उन्हें दूसरी मंज़िल पर स्थानांतरित कर दिया गया। लेकिन गोबरदास भी धुन के पक्के निकले, उन्होंने एक हाथ और पलंग की चादर के सहारे बाथरूम की खिड़की से उतर भागने की कोशिश की जो असफल रही और इस प्रक्रिया में उनका एक पांव भी जाता रहा। बाद में मुहल्ले वालों की अनथक कोशिश और डॉक्टर की उदारता के चलते वे लंगड़ाते हुए वापस लौट सके।
हमारे जैसे अस्पताल हैं, वैसे ही डॉक्टर! मरीज़ तो उनसे भी आगे। मरीज़ एड्स की जांच के लिए अस्पताल जाता है तो कैंसर की पुष्टि हो जाती है फिर उसका टीबी का धुआंधार इलाज किया जाता है और अंततः वह डेंगू से मारा जाता है। अस्पताल पहुंचने का अर्थ यमद्वार पर पहुंचना है। अभी कल ही उत्तरप्रदेश के एक अस्पताल में भयानक आग लग गई। कई मरीज़ आग लगने से झुलस कर मर गये। अब जिसकी मौत आ गई हो तो वह किसी भी तरह मरेगा ही! अगर मरना न होता तो अस्पताल आते ही क्यों? ये भाग्यशाली मरीज़ थे। आगजनी में मरकर ये अपने आश्रितों को मुआवज़ा राशि दे गए, अगर किसी और बीमारी से मरते तो जान तो जाती ही, धन भी लुट जाता। सुना है उस अस्पताल में भर्ती होने के लिए लोग टूट पड़े हैं।