नेह की पूँजी
नेह की पूँजी
बाहर मूसलाधार बारिश हो रही है। लगता है कहीं बादल फटा है, और बिजली भी गिरी होगी। अमिता को अचानक अम्मा की याद आयी। इतनी बारिश में ना जाने कहाँ होंगी अम्मा। सुबह खुशनुमा मौसम देख अमिता चाय लेकर बाहर बालकनी में आकर बैठ गयी। चाय की चुस्की के साथ पेपर पढ़ते समय अचानक लावारिस लाश का चित्र देखकर वह चौंक गयी। यह तो अम्मा है। मन मे एक हूक सी उठी। और सब याद आने लगा। कुछ महीने पहले उसके फ्लैट की सीढ़ियों पर एक भद्र, गौर वर्ण महिला, सत्तर के आसपास की रही होगी बैठी मिली। अमिता ने बहुत पूछा। "अम्मा कहाँ से आयी हो?" आपका घर कहाँ है? लेकिन वह कुछ नही बता नही पायीं। इसमें क्या है? उनकी गठरी की तरफ ऊँगली कर पूछते ही उन्होंने गठरी उठा अपने सीने से लगा ली और "नहीं- नहीं " कह गिड़गिड़ाने लगी। लगा जैसे पहले भी किसी ने छीनने की कोशिश की हो। अमिता ने फिर नही पूछा। सुबह अमिता ने देखा सामने मंदिर में अम्मा फूल चढ़ा रही थी। अमिता ने मौका देख उत्सुकता वश उनकी गठरी खोल कर देखा। एक फटी चादर, एक गंदी सी गुदड़ी, दो चार साड़ी, और बहुत सारे अलग- अलग आकार के पत्थर थे। अमिता ने जल्दी से देख उसे वैसे ही रख दिया। जरूर किसी अच्छे घर की महिला है। एक अपनेपन का भाव उमड़ आया अमिता के मन में। अगली सुबह शोर से उसकी नींद खुल गयी। देखा एक लड़का अम्मा को जबर्दस्ती खींचकर ले जाने का प्रयत्न कर रहा है और अम्मा अपना हाथ छुड़ा रही है। भीड़ इकट्ठा होते देख वह लड़का भाग गया। अमिता नीचे अम्मा को लिवाने आ गयी। उसी शाम अमिता के घर का दरवाजा खुला देख अम्मा एक टूटा कप लेकर आ गयी। चाय चाहिये ? पूछते ही अम्मा ने सर हिला दिया। उस दिन के बाद अम्मा कभी- कभी दरवाजा खटखटा उससे खाना भी माँग लेती। पैसे की जगह वह अपना अमूल्य पत्थर अमिता को दे जाती। उनके लिये वही पूँजी थी। एक दिन रौ में अम्मा ने बताया कि उनके एक बेटी है। जिसे उनके दामाद ने मार डाला। जो जबरदस्ती लेने आया था उस दिन, वह दामाद है। अब वह मुझे मार डालेगा। क्यों अम्मा ? अम्मा सहम गयीं। आँखोँ में दामाद का खौफ़ उतर आया। आपके पति कहाँ है ? वो चले गये। कहाँ ? पता नहीं । पैसा है मेरे पास। कहाँ अम्मा किस बैंक में ? "मैं अपना पैसा किसी को नहीं दूंगी।" कहकर अम्मा दौड़ अपनी गठरी पकड़ कर बैठ गयी। लगता, उन्हें इतना त्रास दिया गया था कि वो अर्धविक्षिप्त सी हो गयी थीं। उन्हें कुछ याद नहीं । कभी कुछ कहती और कभी कुछ। उस रात भी ऐसी ही बारिश हो रही थी। किसी ने कई बार बेल बजायी। जैसे ही अमिता ने 'आइडोर ' से झाँका दो लड़के खड़े दिखे । उसने डरकर दरवाजा नही खोला। जैसे- तैसे रात काटी। सुबह उठकर अमिता ने देखा कि उसके घर के बाहर अम्मा के पत्थर रखे हैं। लेकिन अम्मा और उनके सामान का कोई नामों निशान तक नही । अगर यह पूँजी अम्मा ने रखी है तो इसका मतलब अम्मा को पता चल गया था कि कोई उन्हें बलात ले जानेवाला है। पता नही अम्मा भागकर कहाँ गयी होंगी । हो सकता है वो लड़के रात अम्मा का पता करने ही आये हो। जो भी हो ,अमिता का मन रुआँसा हो गया। अब उसे देर नही करनी है। सीधा पुलिस स्टेशन पँहुच उसने सारी कार्रवाई कर अम्मा का दाह संस्कार करवाने का इंतज़ाम स्वयं किया। "अम्मा! आप लावारिस नही हो। " कह वह फफक- फफफकर रो पड़ी।