फुनट्टा
फुनट्टा
घर में घुसते ही पत्नी ने मध्यम स्वर में प्रश्न कर दिया।
"आपने तो 20 मिनट पहले बताया था कि पहुँचने वाले हो; आज कौन मिल गया रास्ते में ?"
"अरे मिला तो कोई नहीं, ऑटो वाले ने ही बड़ा समय खराब कर दिया। 10 मिनट की जगह 20 मिनट लगा दिये। न तो सवारी खुले पैसे देती है और न ही वे खुद रखते हैं !
"हाँ, ऐसा तो आज मेरे साथ भी हुआ। जब मैं चौराहे पर उतरकर ऑटो वाले को पैसे देने लगी तो उसने एक आदमी से खुले ही देने की बात अटका दी, वो कई दुकानों पर पूछ कर भी आया परन्तु किसी ने नहीं दिए। अब, बिना गुटका, बीड़ी लिए कौन खुले करता है। अच्छा हुआ मेरे पास सिक्के निकल आये और उसका भी काम चल गया।"
"बिल्कुल ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ, वो महिला खुले पैसे न देती तो मुझे दुगुने ही छोड़ने पड़ते।"
"तो क्या आप ही कह रहे थे कि चलो 10 रुपये रख लो। कहीं आप बीच की सीट पर तो नहीं बैठे थे, जहाँ दो लेडीज बैठी थीं, क्योंकि अन्य आदमी तो रास्ते में ही उतर गए थे।"
"सही कहा, पर आश्चर्य है कि हम दोनों को ही पता नहीं चला। ..."
"पता कैसे चलता! आप तो फुनट्टा में खोये होंगे और मैं सामने बैठी लेडी की फालतू बातों से बचने के कारण शॉल से मुँह ढके बैठी रही, वरना पहचान होते ही बात करते करते घर तक चली आती!"
और वे दोनों फुनट्टा की बात पर हँसते और टीवी देखते हुए भोजन करने लगे। वह बीच-बीच में निगाह बचाकर पत्नी के क्रोध-चाप को भी भाँप रहा था जो स्वंय हँसी को दबा रही थी।