आधा किलो मूँगफली

आधा किलो मूँगफली

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लोकल ट्रेन एक ग्रामीण स्टेशन पर रुकी। वहाँ बहुत अधिक सवारियाँ उतरीं। आज गाड़ी एक घंटा लेट थी जो अन्यथा यहाँ से शाम के सात-सवा सात बजे गुजरती है। अब कूपे में इक्का द-क्का लोग मौजूद थे जो सर्दी के कारण सिकुड़कर बैठे हुए थे अन्यथा वे भीड़ छटते ही पैर सीधे करने के लिए पसर गए होते। जहाँ माखन बैठा हुआ था उसके सामने एक जाना-पहचाना रोज-यात्री लेटा था। उसे देखकर माखन ने भी लेटने की बात सोची लेकिन जब अपने दफ्तर-थैले को सिर के नीचे रखने लगा तो मनपसंद दुकानदार से मँगवाई हुई मूँगफली की थैली की खरड़-खरड़ ने विचार को उड़ा दिया। पूरे शहर में धकेल पर मूँगफली बेचने वाला वह एकमात्र विक्रेता है जो अलग विधि से भुनाई करता है।

कई दिन से माखन उससे मूँगफली मँगवाने की फिराक में था लेकिन वह स्थान उल्टी दिशा में होने के कारण टालमटोल होती रही। आज किसी कार्य से उधर जाना हुआ तो उसने एक किलो उजले रंग की मूँगफली ले लीं। किन्तु कार्यालय में एक साथी के जिद करने पर उस थैली के दो भाग हो गए और आधा सेर मूँगफली माखन ने अपने घर के लिए रख लीं।

ट्रेन ने कुछ गति पकड़ी। कूपे के दूसरे छोर से किसी झगड़े होने जैसा शोर सुनाई दिया। थोड़ी देर बाद तीन-चार नवयुवक तेज आवाज में बातें करते हुए आये और शौचालय के इर्द-गिर्द खड़े हो गए। माखन की सीट शौचालय के तुरंत बाद ही थी। धीरे-धीरे उन लड़कों की संख्या सात-आठ हो गई जिनमें से एक-दो लड़के बार-बार जाकर अगले भाग में बैठे एक दंपति को चुनौती देते हुए धमका कर लौटते, फिर अपने साथियों से बातें करते।

समूह में एक दो लड़के चुप अवश्य थे लेकिन वे भी उन लफंगों को या तो जानबूझकर नहीं टोक रहे थे या फिर उनके उत्पाती प्रकृति होने के भय से मौन साधे हुए थे। उग्र लड़कों की जीभ से कुछ इस प्रकार शब्द बाहर निकल रहे थे;

पहला- स्साला बीवी के सामने ज्यादा ही तीसमारखाँ बन रहा है,... देखो तो....

दूसरा- क्रिकेट का बल्ला दिखाकर हमें डरा रहा है जैसे हम दूध पीते बच्चे हैं....

तीसरा- अरे, मैं तो वहाँ जाकर खड़ा ही हुआ था, बैठ भी नहीं पाया, कहता है कि कहीं और जाकर बैठो, पूरा डिब्बा खाली पड़ा है....

चौथा- पता है मुझसे क्या कहा, क्या कोई सुंदर औरत नहीं देखी, बड़ा घमंड है मादर...

पाँचवा- हरामी का पाला नहीं पड़ा है हम जैसे सिरफिरों से, आज नानी याद आ जायेगी कुत्ते को.... ऐसा थोबड़ा बनायेंगे कि घर वाले भी नहीं पहचान पायेंगे... इत्यादि।

माखन जो कि अब तक अधलेटा था, अनचाहे ही कब खाली पड़ी लम्बी सीट पर कोने में सिमटकर बैठ गया उसे स्वयं पता नहीं चला। वह आँखों की कोरों से, न देखने का भ्रम करते हुए लड़कों को देख रहा था। नियमित यात्री होने से शायद उसे उम्मीद रही हो कि वह किसी को पहचानता हो लेकिन ऐसा कोई नहीं दिखा। हो सकता है कि वे सेना या पुलिस की भर्ती प्रक्रिया में उपस्थित होने कहीं जा रहे हों।

एक दो-लड़के आड़े-तिरछे सीटों पर टिके हुए थे और अन्य सभी उपद्रव की मंशा से खड़े होकर ही ऊटपटांग बातें कर रहे थे। तभी एक लड़का पुनः कूपे के अगले भाग में गया और उस दंपती से गाली-गलौज करके आया। यह क्रम अलग-अलग लड़कों ने कई बार दोहराया। माखन की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। उसने पेशाब करने के बहाने डिब्बे के दूसरे छोर वाले बाथरूम तक जाने का मन बनाया ताकि यथास्थिति को समझ सके।

उसने सामने की सीट पर लेटे हुए व्यक्ति को जगाते हुए अपने बैग का ध्यान रखने के लिए कहा। वह सोने का बहाना बनाकर चुपचाप लेटा था। उसने माखन को कुछ भी न करने के लिए इशारा किया। बहरहाल, माखन उठकर बाथरूम की ओर बढ़ गया और झगड़े में प्रभावित दंपति को देखा।

तीस-पैतीस वर्ष की उम्र के पति-पत्नी और लगभग पाँच वर्ष की एक बच्ची। दो बड़े बैग और कुछ फुटकर सामान। पुरूष हाथ में क्रिकेट का बल्ला लिए था। झाँकते हुए वह शौचालय तक गया और एक-दो मिनट घुमड़ने के बाद लौटा।

तभी दो लड़के वहाँ आये और उन लोगों को गाली-गलौज करते हुए फिर धमकाने लगे। 'तू बुला लेना अपने पुलिस वाले फूफा को, लेकिन वहाँ पहुँचेगा तब न !' उधर वह व्यक्ति भी उन्हें उन्हीं की भाषा में ललकार रहा था। माखन वहाँ बिना रुके अपनी जगह पर आकर बैठ गया। अब कुल चार लड़के बैठे हुए थे। अन्य दो खिड़की के पास खड़े होकर योजना बनाने की घुसुर-पुसुर करते नजर आए। एक लड़का ऊपर की बैंचों से लकड़ी की फंटियां उखाड़ने की कोशिश कर रहा था।

माखन की बेचैनी कम होने की बजाय बढ़ गई। उसका मानवीय संवेदना से पल्लवित मन उसे उकसा रहा था, 'फालतू की फिक्र छोड़ो, काम करो। तुम अवश्य ही कुछ कर सकते हो।' उसने अपनी सीट पर बैठे लड़के से अनभिज्ञ होकर ऐसे बात करना शुरू किया मानो अभी डिब्बे में प्रवेश किया हो या फिर अभी नींद से जगा हो। बातचीत आगे बढ़ी तो उसने एक और लड़का जो दूसरी तरफ बैठा था और शुरुआत से ही चुप दिखाई दिया, को संकेत से अपने पास बुलाया और बहुत ही सीधी सादी बातें करने लगा।

उसी दौरान उसे एक अदभुत विचार आया और कोने में रखे हुए बैग से मूँगफली की थैली निकाली। सिर घुमाते समय उसकी नजर सामने लेटे व्यक्ति से मिली जो पुनः आँखों और होठों के संयुक्त संकेत से रिस्क नहीं लेने को सचेत कर रहा था।

माखन ने मुट्ठी भर के मूंगफलियाँ दोनों लड़कों को दीं। स्वाभाविक रूप से वे मना करने लगे जिस पर उसने वातावरण को हल्का बनाने के लिए जान बूझकर कहा, 'अरे नौजवानों, ये कोई मिठाई या भोजन थोड़े ही है जो इसमें कुछ पदार्थ मिला होगा।'

'सर्दी का मौसम है और टाइम पास भी तो करना है।' ... 'और यदि तुम्हें यह एहसान या कर्ज लगता है तो कहीं किसी को खिलाकर इससे मुक्ति पा लेना।' कहते हुए उसने पहले से बैठे लड़के के सम्मुख सीट पर मुट्ठी खोल दी। माखन के शब्द, उन दोनों के साथ ही, अन्य एक लड़के को प्रभावित कर चुके थे।

दूसरे लड़के को मूँगफली देने के लिए मुट्ठी भरी तो उसने सहर्ष स्वीकार कर लीं। उसने मूँगफली हाथ में लेते ही हल्की हँसी के साथ कहा, 'अंकल आप ठग लिए किसी ने, ये तो कच्ची हैं।' शायद उसने उनके सफेद चट रंग को देख कर ऐसा मत रखा। 'खाओ तो सही, फिर कहना, यदि ऐसी मूँगफली कभी खायी हों ! अंकल को याद करोगे।' फिर उसने, सीट छोड़ खड़े होकर उसकी बातें सुन रहे लड़के की ओर मूँगफली भरी मुट्ठी बढ़ाई तो हल्के विरोध के बाद उसने भी हाथ आगे कर दिए। इस पर माखन ने उसे बैठने का आदेशात्मक मशवरा दिया। उसी समय दरवाजे के पास खड़े एक लड़के ने सभी को याद दिलाया कि आउटर आने वाला है, उससे पहले ही चैन खींचकर गाड़ी रोकनी है और उसे नीचे घसीटना है।

चलो ! फंटियां उखाड़ने वाला कुकर्मी बैंचों से चार-पाँच लकड़ियाँ निकाल चुका था।माखन फिर असहज महसूस कर रहा था लेकिन वह अपने स्वभाव के अनुसार सतत प्रयत्न करता रहा। उसने कुछ अन्य लड़कों को भी 'येन केन प्रकारेण' मूँगफली थमा दी। उसका विचार स्पष्ट था कि यदि वे उसकी बात सुन लेंगे तो संभवतः मान भी सकते हैं। निरन्तर प्रयास करते हुए मूँगफली देने और बातें करने का एक धनात्मक परिणाम तो दिख ही रहा था। टाइम पास.. अर्थात 'एक्शन सीन' का बहुत कुछ समय निकल रहा था। अभी तक माखन ने एक बार भी किसी को व्यक्तिगत तौर पर झगड़े से संबंधित सलाह नहीं दी। तभी गैंग लीडर ने सभी को एक साथ कहा, 'चलो, जल्दी करो, आउटर आने वाला है'.. 'चैन खींच वे काले, क्या कभी मूँगफली नहीं खाई हैं, भुक्खड़ स्साला.. ' माखन ने अपने सिर से टोपा निकाला और कनपटी के ऊपर खुजलाते हुए, गैंग के द्वितीय प्रभारी को आग्रह करते हुए अपना विचार कहा, 'सुनो भाई, एक बार यह अवश्य सोच लेना कि ऐसा कोई कदम मत उठाना कि पछतावा करने के बाद भी जिसकी क्षतिपूर्ति न हो सके।' गैंग के सदस्य अगले भाग की तरफ बढ़ गए। तीन लड़के अभी भी वहीं पर बैठे हुए थे। ड्राइवर ने सीटी बजाई तो माखन ने खिड़की से देखा। शहर की जगमगाहट दिखाई दी। आउटर निकल चुका था और कुछ मिनटों में ट्रेन स्टेशन पर पहुँचने वाली है।


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