चाचू, रावण हँस क्यों रहा था !

चाचू, रावण हँस क्यों रहा था !

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लगभग तीन दशक हो गए। दशहरे का दिन था, पशु पेंठ के मैदान में सालाना मेला, पिछले दस दिन से नियमित रामलीला हो रही थी, भेदी और छेदी के कई वर्ष पुराने मत और पक्के होते जाते जबकि दोनों विपरीत थे।

छेदी कहता कि रामलीला देखने के लिए हमारी दस दिन की छुट्टी होती है पर भेदी यह कह कर अपनी बात शेर रखता कि छुट्टियां होती हैं तभी रामलीला होती है। फिर दोनों वेदी बाबा को परेशान करते। प्रतिवर्ष यह बहस होती और रावण दहन के साथ साल भर को शांत हो जाते दोनों। आज छेदी को भेदी की बहुत याद आ रही थी। 'कुछ भी हो वह मेरी हर बात का हल ढूंढ निकालता है।' पलक खुलते ही, उसके विचार बचपन के उस दशहरे मेले में ले गए जब वह भेदी से बिछड़ गया था।

हुआ यूँ की रावण दहन के दौरान, जैसे ही श्री राम (चरित्र) ने आग का जलता हुआ तीर छोड़ा, विशालकाय रावण के पुतले में आग जलनी शुरू हुई और कुछ पटाखे निकल कर लोगों के बीच आ गिरे, मैदान में अफरा-तफरी मच गई जो उजाला समाप्त होने तक जारी रही।

दूसरी बात यह हुई कि मंच से जिस भोंपू से संवाद और संबोधन किये जाते उस पर रावण की दहाड़ती हँसी की कैसेट तेज आवाज में बज रही थी। भगदड़ और आग के भय से सभी मंच छोड़ भाग गए, ऐसा दृश्य प्रकट हुआ कि एकमात्र रावण का अट्टहास सुनाई दे रहा था, अन्य हर प्राणी अपने बचाव की जुगत में था। बच्चे बिछड़ने के कारण चीखने लग गए, छेदी भेदी को चाचा दिखाई पड़ा।

छेदी: चाचा , तुमने भेदी देखा ?

भेदी: अब यहाँ कौन दिख रहा है, गाँव जा, शाम हो रही है, वो भी आ जायेगा।

छेदी: अच्छा जी।

अँधेरे की बात सुन छेदी तुरंत चल पड़ा। यहाँ से उसका गाँव डेढ़ मील दूर जो था। इस बड़े गाँव के परले छोर परपहुँचने तक धुंध का सा अँधेरा हो गया। ग्रामीण परिवेश में रहने के कारण उसे भय तो नहीं लगता परंतु आज उसके पैर ठिठक कर रुक गए और पगडंडी के किनारे खड़ा हो गया। आधा घंटे बाद भेदी आया तो डांट सुनकर उसके साथ हो लिया।

थोड़ी देर चुप्पी रखी परन्तु जैसे ही खेदी ने कुछ बोला उसने अपनी बात शुरू कर दी।

छेदी: चाचू, रावण हँस क्यों रहा था ?

(भय का कारण रावण की अट्टहास ही थी)

भेदी ने अनसुनी कर दी। मेला, भीड़, रावण दहन, भेदी के इर्द गिर्द बात होती, फिर छेदी पूछता।

चाचू, रावण हँस क्यों रहा था ?

तीसरी बार पूछा, फिर दोनों एकदम शांत हो गए, मानो पहेली सुलझानी हो। छेदी सोचने लगा कि यदि भेदी होता तो अब तक बता देता। खेदी को उत्तर से अधिक चिंता अपने कुर्ते की होने लगी, हर प्रश्न के समय छेदी उसके कुर्ते के छोर को खींचता। अँधेरा होने के कारण दूर हटने को भी नहीं कह सकता। समस्या यह रही कि खेदी को लाउड स्पीकर वाली बात का आभास ही नहीं था।

भेदी: लल्लू, बात ये है कि हम सब साल भर मेले का इंतजार करते हैं, काम छोड़कर आते है, राम से जुड़े अनेक चरित्रों को सजाते हैं और पूजा करते हैं, नये सामान, कपड़े, मिठाई, खेल-खिलौने आदि खरीदते हैं और घर में, सार्वजानिक स्थानों पर और रामलीला मैदान में विभिन्न महानुभावों को बुलाते हैं।

छेदी: पर इन बातों से क्या ?

भेदी: अरे पगले, रावण यही सोचकर तो हँस रहा था कि एन वक्त पर वह अनचाहे विशालकाय प्रतिमा समान स्थापित हो जाता है, सबके बीच उचित स्थान पाता है, सिर्फ उसी की चर्चा होती है और सबसे अधिक वह इस बात पर हँसता है की नगर या उपनगर के सर्व सम्मानित व्यक्ति द्वारा एक वर्ष के लिए पैरोल पर मुक्त कर दिया जाता है।

छेदी और खेदी को गाँव आने का आभास तब हुआ जब एक दो कुत्ते भौंकते हुए आए और अपने स्वर में परिचित वाले भाव बदलने लगे। प्रश्नोत्तर उपरान्त, खेदी पूर्ण संतुष्ट और छेदी सहमत प्रतीत हो रहा था। हालाँकि प्रश्न जस का तस रहा।

रावण हँस क्यों रहा था ?


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