दियासलाई
दियासलाई
जहाँ एक ओर बाजार जाते हुए बच्चों को घुटुमुन बहुत उत्साहित होकर देख रहा था वहीं दूसरी ओर पटाखों इत्यादि से भरे हुए पॉलीथिन थैले लटकाए लौटने वालों को इस जिज्ञासा के साथ कि किसमें हजार रुपए का सामान होगा और किसमें आठ सौ का। उसके लिए इस उत्साह और जिज्ञासा का बस इतना ही अर्थ था जैसे किसी चौराहे पर खड़ा यात्री अपनी बस का इंतजार करने के मध्यान्तर में गाड़ियों के नंबर प्लेट पढ़ते हुए अपने आप को व्यस्त रखता है कि कौन सा ट्रक पंजाब का है और कौन सा राजस्थान का है, बेशक उसकी सारी रिश्तेदारियां यू.पी. में हो।
इसी उधेड़बुन के बीच उसकी नजर महँगे पर पड़ी। उस लड़के का असली नाम वह नहीं जानता था। आर्थिक स्थिति में पूरब-पश्चिम का अंतर होने के कारण कभी पूछने की हिम्मत भी नहीं हुई। उनकी मुलाकात के शुरुआती दिनों में उसने महसूस किया कि नीले रंग की कोठी वाले लड़के के पास प्रत्येक वस्तु दूसरे बच्चों की चीजों से बढ़िया और महँगी होती है इसलिए अनायास ही वह उसे 'महँगे' कहने लगा। महँगा कहने में सम्मान कम लगता था उसे।
नजर पड़ने के कुछ क्षण के बाद ही महँगे चलते हुए लोगों के बीच अनदिखा हो गया तो घुटुमुन निराश हो गया। उसे आशा थी कि यदि वह उसे संकेत से समझा देता तो वह अवश्य उसे पटाखे ला देता और फिर वह निरन्तर बहती हुई सड़क और घूमते हुए तिराहे को देखकर रोमांचित महसूस करने लगा।
थोड़ी देर बाद अँधेरा बढ़ने लगा। आज उसे अपनी झोंपडी में लौटने की कोई फिक्र नहीं थी इसलिए वह सड़क की पुलिया पर बैठकर मकानों पर फैली हुई रंगीन रोशनी की लड़ियों की आकृतियों को देख उनमें तुलना करते हुए व्यस्त हो गया। अचानक उसके निकट आकर एक मोटरसाईकिल रुकी।
घुटुमुन रोशनाई को लेकर ऐसे खोया हुआ था जैसे किसी की निगाहें तारों की विभिन्न आकृतियों ध्रुवतारा, सप्तर्षि आदि को खोजते हुए आकाश में खो जाती हैं और फिर, महँगे के अलावा कौन उससे मिलेगा। महँगे होता तो कार में आता। लेकिन यह क्या! वह महँगे ही था। त्यौहार की भीड़ को देखते हुए आज उसके पिताजी मोटरसाइकिल से ही बाजार गये। उसके मित्र ने शीघ्र ही एक मध्यम आकार की पॉलिथीन थैली घुटुमुन को पकड़ा दी और "ये तेरे लिए है..." ही कह सका, उसके पिताजी ने गाड़ी आगे बढ़ा दी।
घुटुमुन की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। एक क्षण में ही वह चमकती रोशनी को भूल गया और आधा फर्लांग दूर अपनी झुग्गी की ओर चल दिया जहाँ पूरी तरह से अंधकार पसरा था। उसके और एक दो परिवारों को छोड़कर सभी लोग दीपावली मनाने अपने मूल राज्य/जिलों में चले गए।
अन्य मौजूद परिवारों की तरह, उसके माता-पिता उसके दो छोटे भाई बहन को साथ लेकर चार पैसे कमाने की उम्मीद से किसी कोठी में साज-सज्जा और सफाई के लिए गये थे और देर रात तक ही लौटेंगे। वह स्वयं देखभाल की बात कहकर रुक गया था और उसके पिताजी ने भी अधिक जोर नहीं दिया।
सत्य और झूठ की तरह, अंधकार और प्रकाश का सही अनुमान सापेक्षता के धरातल पर रखकर ही पता चलता है। जहाँ एक ओर चारों ओर प्रकाश फैला हुआ था वहीं कुछ समय से खराब झुग्गियों के साथ में जाती सड़क की लाइटों की कमी आज बहुत खल रही थी। हर तरफ की जगमगाहट की सापेक्षता के कारण आज अँधेरा अधिक स्याह लग रहा था।
अपनी झुग्गी को जाते समय उसे गली के भौंकते कुत्तों के एक समूह से बचकर निकलना पड़ा। झुग्गी में पहुँचते ही उसने उस थैली को खटिया पर उड़ेल दिया और टटोलकर पटाखे, मोमबत्ती, चकरी, अनार, फूलझड़ी, रॉकेट आदि का अनुमान लगाया। खुशी की अवस्था में उसने तीनों ओर ऊँचे और भव्य मकानों पर चमकती हुई वैद्युत-आवली, पटाखे चलाते हुए खिलखिलाते लोग और कहीं कहीं उठ रहे गुबारनुमा धुँए को देखा। चौथी दिशा में ग्रामीण क्षेत्र के दूर तक फैले फसली खेत होने के कारण इस समय अँधेरा ही प्रतीत हो रहा था। एकाध कोस दूर के गाँवों के छुटपुट बल्बों की टिमटिमाती रोशनी आज की चमक दमक में कहीं लुप्त हो गई थी। इस समय कॉलोनी की गलियों में चहलकदमी कम हो गई थी।
रोमांचित हो उसने एक मोमबत्ती खोजी, कुछ पटाखे चुने और दियासलाई तलाशने लगा। थैली के सामान में दियासलाई नहीं मिली। उत्साहित होकर वह अपने घर के चूल्हे के आसपास के सामान में माचिस तलाशने में जुट गया। अंधेरे में उसने सब कुछ कई बार टटोल लिया लेकिन सामान को अव्यवस्थित करने के सिवाय कुछ हासिल नहीं हुआ। अपनी संतुष्टि के लिए उसने खटिया पर बिखरे पड़े आतिशी सामान को फिर उलट-पलट किया। परिणाम शून्य।
अब उसे कॉलोनी स्थित इमारतों पर जगमगाहट की बजाय चकाचौंध दिख रहा था और विभिन्न प्रकार के पटाखों व् अन्य चीजों की आवाज में सिर्फ एक शोर। किसी स्पर्धा में तेज दौड़ लगाने किन्तु हार जाने वाले साँस फूलते धावक की भाँति घुटुमुन पटाखे बिखरी खटिया पर पड़ गया और गगन में टिमटिमाते तारों को देखते हुए चंद्रमा को खोजने लगा। यह बात उसको कौन बताता कि आज आकाशीय बहुरूपिया उसे ढूँढे नहीं मिलेगा, दियासलाई की तरह।