अपराध बोध
अपराध बोध
'मम्मा सावन आ गया।' आठ वर्षीय आयुष ने अंदर आते हुए बाल सुलभ चपलता के साथ कहा।
'सावन आ गया। तुझे कैसे मालूम ?' सब्जी चलाते-चलाते विशाखा ने आश्चर्य मिश्रित स्वर में पूछा।
' यह लो आपको नहीं मालूम!! खिड़की से बाहर झांक कर देखिए बरसी री बुंदिया सावन की, सावन की मनभावन की ।' नन्हा आयुष विशाखा की नकल उतारते हुए बोला।
' हट शरारती।'
विशाखा की मीठी झिड़की सुनकर अबोध आयुष सावन की सुखद सलोनी रिमझिम फुहारों का आनंद लेने लग गया किंतु वह सोच में डूब गई यह सच है कि उसे यह गाना अत्यंत ही प्रिय है तथा पिछले कुछ दिनों से सोते जागते उठते बैठते ना जाने क्यों अनायास ही यह गाना उसके लबों पर थिरकने लगता है किंतु उसके हृदय का मासूम टुकड़ा उसका बेटा आयुष उसकी प्रत्येक हरकत और व्यवहार का इतनी बारीकी से अवलोकन करता रहता है इसका पता उसे आज ही लगा।
हम बड़े बच्चों को नादान मासूम समझकर उनकी उपस्थिति को अनदेखा करके कभी-कभी अनपेक्षित असामान्य व्यवहार कर बैठते हैं बिना इसकी कल्पना के कहीं हमारी क्रियाकलाप अविकसित नाजुक फूल के अवचेतन मन में जड़ें तो नहीं जमा रहे हैं भविष्य में अब उसे सतर्क रहना होगा क्योंकि आयुष अब उतना अबोध एवं मासूम नहीं रहा है जितना कि वह सोचती थी।
नन्हे आयुष ने अपनी निर्दोष अदाओं से अनायास विशाखा की सुषुप्त अभिलाषा ओं की अग्नि में कुछ कम कर फेंक दिए थे वास्तव में उसका कलाकार मन सदैव अतृप्त ही रहता था निरंतर स्थानांतरण के कारण वह अपनी कला में कोई निकाल नहीं ला पाई थी नई जगह जाकर जब तक वह थोड़ा व्यवस्थित होती टूटे सूत्रों को सहेजने का प्रयास करती स्थानांतरण का आदेश आ जाता और तिनका तिनका जोड़ा स्वप्न फिर बिखर जाता है।
संगीत नृत्य नाटक में विशाखा की बाल्यावस्था से ही रुचि रही है स्कूल से लेकर कालेज तक कोई भी सांस्कृतिक कार्यक्रम उसके बिना अपूर्ण ही रहता था आज भी शादी विवाह का मौका हो जन्मदिन हो या विवाह की वर्षगांठ लोग उससे फरमाइश कर ही बैठते हैं तथा प्रत्येक अवसर के लिए उपस्थित गानों के खजाने में से कोई गाना सुना कर वह महफ़िल की रौनक में चार चांद लगा ही देती है सच पूछिए तो उसके पति राजीव भी उसकी प्रशंसा सुनकर गौरवान्वित हो उठते हैं उन्हें अपनी सहधर्मिणी कि इस योग्यता पर नाज है।
राजीव पीडब्ल्यूडी में एग्जीक्यूटिव इंजीनियर हैं। गाड़ी ,बंगला ,नौकर चाकर सब मिले हैं। नाम है, इज्जत है और इससे भी बढ़कर है राजीव का सुदर्शन एवं आकर्षक व्यक्तित्व तथा उनका उसके प्रति अगाध प्रेम और विश्वास। जिसके कारण उसको अपने सद्य:स्नाता स्वप्न के बिछड़ने का दुख तो अवश्य होता है किंतु हताशा नहीं। घूरे के भी दिन फिरते हैं , प्रत्येक कार्य का अपना एक वक्त होता है विशाखा उसी वक्त का इंतजार कर रही है जब उसके अविकसित स्वप्न साकार रूप में आकर निज हस्तों से उसे गढ़ेंगे, तराशेंगे एवं संवारेंगे।
' क्या बात है ? कहां खोई हुई हो ? 'राजीव ने रसोई में आकर उसके समीप खड़े होकर कहा।
'आज इतनी जल्दी कैसे ?'राजीव की आवाज सुनकर विशाखा चकित होकर बोली। वह अपने ख्यालों में इतनी खोई हुई थी कि राजीव की गाड़ी का हॉर्न भी उसे सुनाई नहीं पड़ा था।
' बस तुम्हारी याद आई और चला आया।'राजीव ने प्रेमासिक्त दृष्टि उस पर डालते हुए कहा।
' क्यों झूठ बोलते हो ! 'लजाई शरमाई सी विशाखा बोल उठी थी।
' झूठ मैडम इतनी सुहाने मौसम में आपका साथ हो और हाथ में गर्मागर्म पकौड़ियों की प्लेट हो तो मजा आ जाए। अगर आपको कोई तकलीफ ना हो तो…।' वाक्य अधूरा छोड़ कर राजीव ने प्रश्नवाचक मुद्रा में उसे देखा।
'तकलीफ कैसी ? आप फ्रेश हो कर आइए तब तक मैं गर्मागर्म पकौड़ियाँ बनाती हूँ।'
पकौड़ियाँ खाने की इच्छा कर रही है यदि मैडम को कोई तकलीफ ना हो तो राजीव के मुख से औपचारिक वाक्य सुनकर मन में कहीं कुछ दरक गया। नौकर छुट्टी पर चला गया है तो क्या अधिकार पूर्वक मनवांछित डिशेज के लिए आग्रह भी नहीं कर सकते। माना वह अमीर माता-पिता की इकलौती संतान है। विवाह के समय ही उसके पिता ने अपने विश्वस्त नौकर रामू के पुत्र श्यामू को घर के अन्य कार्यों के साथ खाना बनाने के लिए उसके साथ भेज दिया था। पिछले दस वर्षों से उसने रसोई की जिम्मेदारी संभाल रखी है। पिछले हफ्ते ही वह अपने विवाह के लिए डेढ़ महीने की छुट्टी लेकर गया है।
ऐसा नहीं है कि वह खाना नहीं बनाती या उसे खाना बनाना नहीं आता। विशिष्ट अवसरों पर उसके बनाए व्यंजनों की लोग भरपूर प्रशंसा करते रहे हैं लेकिन न जाने क्यों खाना बनाना उसे सदा ही नीरस लगता है। आज राजीव का संकोच मिश्रित स्वर उसे चौका गया था। कहीं यह दांपत्य जीवन में आई आंधी का सूचक तो नहीं तुरंत ही मन में अनपेक्षित उभर कर आई भावनाओं को उसने यह सोचकर झटकने का प्रयास किया कि भविष्य में रसोई की जिम्मेदारी भी वह स्वयं संभालने का प्रयास करेगी क्योंकि इंसान के मन को जीतने का एक रास्ता पेट से होकर भी जाता है। राजीव के फ्रेश होकर आते ही उसने राजीव के मनपसंद प्याज के पकोड़े, हरे धनिए की चटनी के साथ परोस दिये।
'मम्मा, आपके हाथ के बने पकौड़े खाकर तो मजा ही आ गया। मन कर रहा है कि बनाने वाले का हाथ ही चूम लूँ।' आयुष ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए राजीव के अंदाज में कहा।
आयुष का वाक्य एवं अंदाज देखकर राजीव भी चौंक गए तथा इशारे से पूछा कि माजरा क्या है ?
उसकी अनभिज्ञता का पर आयुष का समर्थन करते हुए बोले , 'अच्छे क्यों न लगेंगे बेटा, इसमें तुम्हारी मम्मी का प्यार जो मिला हुआ है।'
' बेटा, यदि तुम कहोगे तो रोज ही पकोड़े बना दिया करूंगी। वैसे भी इन सब चीजों को खाने का मजा इसी मौसम में ही है।'
एक बार फिर सिद्ध हो गया था कि आयुष का कथन अनजाने में उनके द्वारा किए गए व्यवहार का ही प्रतिफल है। विशाखा ने सोचा इस संदर्भ में वह राजीव से बात करेगी ।
आमोद प्रमोद युक्त वचनों के मध्य नाश्ते का आनंद ले ही रहे थे कि फोन की घंटी टन टना उठी। फोन विशाखा ने ही उठाया । लेडीज क्लब की सेक्रेटरी श्रीमती राय चौधरी की आवाज थी …' विशाखा जी इस वर्ष सावन संध्या के अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। कार्यक्रम के निरूपण के लिए मीटिंग लेडीज क्लब में हो रही है । मैडम का आग्रह है कि आप अवश्य आयें।'
' लेकिन मैं तो कार्यकारिणी समिति की सदस्य नहीं हूँ।'
' मैं जानती हूँ किंतु मैडम का कहना है इस बार आपको ही प्रोग्राम का चयन, निर्धारण एवं संचालन करना है।'
विशाखा को अभी इस शहर में आये मात्र चार महीने ही हुए हैं। कुछ विशिष्ट अवसरों पर उसकी गायन प्रतिभा को देखकर शायद कार्यक्रम के निर्धारण एवं संचालन की जिम्मेदारी उसे सौंपी जा रही है। सांस्कृतिक कार्यक्रम की सेक्रेटरी श्रीमती भाटिया बड़ी तेज तर्रार एवं घमंडी महिला हैं। यद्यपि वह गाती अच्छा है किंतु उसके आने के पश्चात उनको अपना नंबर वन का सिंहासन हिलता प्रतीत होने लगा है अतः जब तब जाने अनजाने उससे अकारण तकरार कर बैठती हैं। उसके शांत एवं सहनशील व्यवहार के कारण अब तक अप्रिय स्थिति टलती रही है किंतु क्लब के कार्यक्रम में वह उसका हस्तक्षेप शायद सहन न कर पायें।'
' क्या हुआ, किसका फोन था ?' उसे ध्यान मग्न देखकर राजीव ने पूछा।
' तुम स्वयं तो जा नहीं रही हो तुम्हें बुलाया जा रहा है अतः हस्तक्षेप का प्रश्न ही नहीं उठता।' समस्या बताने पर राजीव ने प्रतिक्रिया व्यक्त की।
' आप नहीं जानते श्रीमती भाटिया को ।'
' तो मना कर दो।'
' लेकिन मैडम मिसेज नागपाल जिलाधीश की पत्नी को मना करना उचित नहीं होगा।'
' अगर ऐसा है तो स्वीकार कर लो चुनोती को काम निकालना भी एक कला है। अपनी वाकपटुता ,बसहनशीलता तथा चातुर्य से विपक्षी के हृदय को जीतकर आसानी से अपना बनाया जा सकता है। वह भी ऐसा विरोधी जो ईर्ष्या रूपी नाग के चंगुल में फंसा सिर्फ विरोध करना ही अपना ध्येय समझता हो। याद रखो ऐसे लोग प्रशंसा के भूखे होते हैं। थोड़ी सी प्रशंसा भी उनके स्व को संतुष्ट कर सकती है। हो सकता है प्रारंभ में तुम्हें समझौते करने पड़े लेकिन अंततः तुम महसूस करोगी की विजय तुम्हारी ही हो रही है। '
विशाखा दूसरे दिन ग्यारह बजे लेडीज क्लब पहुँची तो उसे देखकर सभी चौके किंतु उसे देखकर श्रीमती नागपाल ने कहा,' आइए आइए , आपका ही इंतजार हो रहा था।'
श्रीमती नागपाल की बात सुनकर अनेकों चेहरों पर उगाए प्रश्नों का समाधान हो गया।
फिर श्रीमती भाटिया को संबोधित करते हुए बोली ' 'श्रीमती भाटिया आपको इनसे कार्यक्रम के आयोजन में सहयोग मिलेगा। आप तो जानती ही हैं यह न केवल अच्छी गायिका है वरन गीतकार भी हैं।'
लगभग एक घंटे चली बैठक में स्वागत, सजावट , जलपान के लिए विभिन्न महिलाओं के नेतृत्व में कमेटियों का गठन किया गया। श्रीमती भाटिया एवं विशाखा को कार्यक्रम के निर्धारण की जिम्मेदारी सौंपी गई तथा मंच संचालन के लिए विशाखा को आग्रह मिश्रित आदेश दिया गया।
सुबह ग्यारह बजे से सायं पाँच बजे तक कार्यक्रमों का रिहर्सल करवाने के लिए क्लब में रुकना पड़ता था। श्यामू भी नहीं था। सुबह नाश्ता करके राजीव ऑफिस चले जाते थे तथा आयुष स्कूल। दोपहर का खाना विशाखा हॉट केस में रख देती थी। निरंतर स्थानांतरण के कारण नौकरी तो वह कर नहीं पाई थी पर व्यक्तित्व के विकास के नाम पर हो रहे इस आयोजन में घर और परिवार के साथ सामंजस्य बिठाने का पूर्ण प्रयास कर रही थी।
'कब समाप्त होगी तुम्हारी यह सावन संध्या।' एक दिन ऑफिस से जल्दी आए राजीव आयुष को बरामदे में अकेले बैठे इंतजार करते देखकर झुँझला उठे थे तथा विशाखा के आते ही उसकी बेवजह की व्यस्तता के लिए एटम बम की तरह क्रोध का गोला फूट ही पड़ा था।
ड्रामे का रिहर्सल कराते कराते उसे देर हो गई थी। पड़ोसी मिसेस तलवार को भी आज कहीं जाना पड़ गया था जिससे वह चाबी भी नहीं दे पाई थी वरना उसकी अनुपस्थिति में वही आयुष का ध्यान रखती रही हैं। एक बार उसके आभार प्रकट करने पर वह बोली थीं इसमें आभार की क्या बात है आवश्यकता पड़ने पर पड़ोसी ही पड़ोसी के काम नहीं आएगा तो कौन आएगा।
' बस पच्चीस दिन बाकी हैं।' विशाखा अपराधी से बोल उठी थी।
' अभी पच्चीस दिन बाकी हैं। दस दिन में ही घर की यह हालत हो गई है तो आगे क्या होगा ?'राजीव का क्रोध अभी भी शांत नहीं हुआ था।
अश्रु भर आए थे नयनो में , रुआँसा हो उठा था मन। कितना स्वार्थी होता है पुरुष ? स्त्री सदैव निज इच्छाओं को त्यागकर सुख- दुख , हारी बीमारी की परवाह किए बगैर प्रत्येक हाल में जीवन साथी के साथ चलना चाहती है किंतु उसका पुरुष मनमीत, आराम में आये तनिक से व्यवधान से तिल मिलाकर, संपूर्ण त्याग और बलिदान को पल भर में कटीले वाक्यों द्वारा तहस-नहस कर उसे कटघरे में खड़ा करने से नहीं चूकता है। मन विदीर्ण हो उठा था। इतना आगे बढ़ने के पश्चात पीछे हटना भी तो संभव नहीं था। काश ! आज श्यामू होता तो ऐसी स्थिति ही नहीं आती।
विशाखा ने सोचा कि कोई अस्थाई नौकर मिल जाए तो रख ले लेकिन इतना विश्वास प्राप्त नौकर वह भी कुछ दिनों के लिए, मिलना संभव ही नहीं है। वैसे इस जिले में सभी अधिकारियों के घर सरकारी नौकर हैं। बस आज्ञा देने की देर होती है फील्ड से तुरंत आदमी आ जाते हैं। सरकारी नौकर होने के कारण चोरी का भी डर नहीं रहता है किंतु सरकारी व्यक्ति से व्यक्तिगत काम कराना राजीव के आदर्शवाद के विरुद्ध रहा है। पिछले दस वर्षों में जब वह अपने आदर्शों से नहीं डिगे तो अब तो कोई प्रश्न ही नहीं उठता।
अभी समस्याओं में उलझी विशाखा हैरान परेशान थी कि एक झटका और लगा पड़ोसन श्रीमती तलवार की सास का देहांत हो गया और वह सपरिवार घर चली गई। चाबी की समस्या उठ खड़ी हुई अतः एक ही ताले की तीन चाबियां बनवाई गई। एक राजीव , एक नन्हे आयुष एवं एक स्वयं उसके पास रहती। घर बाहर दोनों फ्रंट पर युद्ध चालू था। राजीव को पसंद नहीं था कि आयुष स्कूल से आने के पश्चात अकेला घर में रहे और उधर श्रीमती भाटिया से लोहा लेना पड़ रहा था।
यहाँ राजीव की सलाह सफल सिद्ध होती नजर आ रही थी। प्रत्येक कार्यक्रम का निर्धारण श्रीमती भाटिया की रुचि को ध्यान में रखकर करने की विशाखा की योजना ने उनके स्वभाव में परिवर्तन ला दिया था। उनकी किसी भी सलाह की प्रशंसा करते हुए विशाखा तुरंत मान जाती थी जिसके कारण यदि बाद में वह उसमें संशोधन करना चाहती थी तो वह भी बिना प्रतिरोध किए अपनी सहमति दे देती थीं अर्थात हो वही रहा था जो वह चाहती थी पर वह श्रीमती भाटिया की सहमति से। उधर आयुष को वह स्कूल से सीधा क्लब बुलवा लेती थी तथा राजीव के घर लौटने से पूर्व भी लौटने का प्रयत्न करती। रात्रि की सब्जी भी यथासंभव सुबह ही बनाकर जाती जिससे शाम का समय समय वह दोनों के साथ बिता सके।
योजनाबद्ध कार्य के द्वारा टकराव, मनमुटाव को टालने का वह हर संभव प्रयास कर रही थी। फाइनल रिहर्सल के दिन बीस नाच गानों में से सिर्फ पंद्रह का ही चयन हुआ। एक हास्य एकांकी कार्यक्रम की जान थी। कुछ गाने डांस तो सचमुच इतने अच्छे थे, वह भी उन महिलाओं द्वारा जिन्होंने घर से बाहर कभी कदम भी नहीं रखा था। यद्यपि डांस और नाटक का निर्देशन विशाखा ने किया था किंतु प्रशंसा की वास्तविक हकदार तो वे महिलाएं थी जो पूर्ण मनोयोग से उसकी कल्पना को साकार रूप प्रदान कर रही थीं। उनका उत्साह देखते ही बनता था।
श्रीमती नागपाल भी व्यक्तिगत रूप से उपस्थित रहकर मार्गदर्शन करती रहती थीं। यदि कहीं किसी में तनाव होता या अहम से अहम टकराते तो वह अपनी वाकपटुता ,चातुर्य एवं निष्पक्ष निर्णय से सब की समस्याएं सुलझा कर वातावरण को सहज बना देती थीं। वह 'महिला क्लब' को एक नया आयाम देना चाहती थीं। महिलाओं की दबी छुपी प्रतिभा जो घर गृहस्ती के पाटों में पिसकर अर्थहीन होती जा रही थी, को उभारना, तराशना चाहती थीं।
वह सामाजिक रूप से जागरूक महिला थीं। वह' महिला क्लब ' को केवल हाऊजी या खाने-पीने का निरर्थक माध्यम ही नहीं बने रहना चाहती थीं वरन वह ' महिला क्लब' के माध्यम से एक मंच का निर्माण करना चाहती थीं जहाँ महिलाओं का सर्वांगीण विकास के लिए वह सतत प्रयत्नशील रहती थीं। कैरम, टेबल टेनिस की प्रतियोगिता के अतिरिक्त उन्होंने दो महीने पूर्व वाद विवाद प्रतियोगिता का भी आयोजन किया था। उसमें भी महिलाओं का उत्साह देखते ही बनता था।
क्लब की इमारत में ही उन्होंने टेबल टेनिस ,कैरम और चैस की व्यवस्था करवाई थी तथा बैडमिंटन के लिए हॉल के निर्माण का कार्य जारी था। पठन-पाठन की सुविधा की क्षुधा को शांत करने के लिए कुछ पत्रिकाएं तथा स्तरीय पुस्तकों के क्रय हेतु प्रत्येक माह निश्चित राशि का भी निर्धारण किया गया था। सामाजिक सेवा के लिए चार -चार महिलाओं की एक टीम बनाई गई थी जो हर सप्ताह एक दिन गरीब बस्ती में जाकर बच्चों तथा प्रौढ़ व्यक्तियों को शिक्षा प्रदान करती थी।
उनके इन कार्यो की कुछ लोग प्रशंसा करते थे तथा कुछ लोग अपनी आदत अनुसार कमियां निकालने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे। सावन संध्या का आयोजन इस शहर में पहली बार हो रहा था अतः चर्चा का विषय बन गया था। श्रीमती नागपाल भी आलोचना का शिकार बनी जिन्होंने इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए सरकारी महकमे का उपयोग किया था। ऊपर से सब शांत थे किंतु अंदर ही अंदर सब उबल रहे थे। घर की बड़ी बुढ़िया भी कहने लगी थी कि यदि यही हाल रहा तो एक दिन घर बर्बाद हो जाएगा।
कुछ लोग व्यंग्य करते न थकते,व इस उम्र में इन औरतों को न जाने क्या सूझी है जो बच्चों को नौकरों के हाथों में सुपुर्द कर नाच गाने में लगी हुई हैं। एक-दो को छोड़कर सभी बौखलाये हुए थे किंतु व्यवस्था अपनी पत्नियों की महत्वाकांक्षाओं के आगे विवश थे। पत्नियां जो कुछ करना चाहती थीं उनके लिए अपनी कला और क्षमता को दिखाने का स्वर्णिम अवसर था और वह इसमें जी जान से लगी हुई थी।
समस्या एकांकी को लेकर थी सभी मुख्य भूमिका निभाना चाहते थे जिसकी कम भूमिका थी उसके संवाद बढ़ाकर भूमिका में जान डाली गई। इस भूमिका को भी विशाखा ने सहजता से निभा ले गई। सभी संतुष्ट थे। कार्यक्रम की वीडियो रिकॉर्डिंग करवाने की बात सुनकर सभी महिलाओं में अतिरिक्त उत्साह भर गया था।
आखिर वह दिन भी आ गया जब हरे हरे परिधानों में सजी संवरी महिलाएं किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थीं। हरे कपड़ों के द्वारा स्वागत द्वार बनाए गए थे। हरे पौधे वाले गमलों को सभागृह में जगह-जगह रखा गया था। सभा भवन की दीवारों पर मयूर आकृतियां नर्तन करती नजर आ रही थीं, मानो हरियाला, मस्ताना सावन स्वयं चलकर सभा भवन में हरियाली मनभावन छटा बिखेर कर कृत्रिमता के वातावरण को अपने नैसर्गिक प्राकृतिक स्वरूप से ढकने की चेष्टा कर रहा हो।
अतिथि महिलाओं का स्वागत हल्दी , कुमकुम लगाकर तथा वेणी पहनाकर किया गया। शहर के गणमान्य व्यक्तियों की पत्नियों को अतिथि के रुप में बुलाया गया। कमिश्नर की पत्नी श्रीमती नीना दीक्षित मुख्य अतिथि थीं।
कार्यक्रम का प्रारंभ स्वागत गान से हुआ। एक के बाद एक कार्यक्रम पर हास्य एकांकी ने सबका मन मोह लिया। 'ज्योति कलश छलके ' नाम गीत पर सीमा भंडारी ने इतना अच्छा नृत्य प्रस्तुत किया कि सब ने दांतों तले अंगुली दबा ली। वह कुशल नृत्यांगना लग रही थीं। सावन सुंदरी के ताज की हकदार भी वही बनी। सभी प्रसन्न थे कार्यक्रम का समापन जलपान से हुआ।
पूरे दिन के अथक परिश्रम के पश्चात् जब विशाखा घर लौटी तो लगा पूरा बदन थक कर चूर चूर हो गया है । किचन से आवाजें आती सुनकर किचन की ओर पैर स्वयं मुड़ गए। राजीव आयुष के लिए गैस पर दूध गर्म कर रहे थे और वह जिद करते हुए कह रहा था, ' पापा, हम दूध नहीं पीयेंगे। हमें कल की तरह ब्रेड आमलेट खाना है।'
'बेटा, जिद मत करो। पहले दूध पी लो फिर मैं ब्रेड आमलेट बना कर देता हूँ।'
राजीव का विवशता भरा स्वर सुनकर आँखों से गंगा जमुना बहने लगी। पत्नी और माँ का कर्तव्य कहीं दूर छिटक गया था। माना वह एक क्षेत्र में सफल रही थी किंतु दूसरा तो नहीं संभाल पाई। राजीव जिन्होंने कभी एक कप चाय तक बनाकर नहीं पी थी वही राजीव आज आयुष के लिए ब्रेड आमलेट बना रहे हैं। आंसुओं को आंखों में ही रोकने का यत्न करती हुई वह किचन में जाकर बोली, 'आप आराम कीजिए, मैं आयुष को ब्रेड आमलेट बना कर देती हूँ।'
'कैसा रहा आपका सावन संध्या का कार्यक्रम आप थके होंगीं। आप आराम कीजिए। आज आप भी इस बंदे के हाथ का कच्चा पक्का खा कर देखिए।' राजीव ने उसकी सहायता को नकारते हुए उसकी ओर मुस्कुराकर देखते हुए कहा।
अपने घर में ही अजनबी बन गई थी विशाखा। वह समझ नहीं पा रही थी कि राजीव व्यंग्य कर रहे हैं या वास्तव में सहानुभूति प्रकट कर रहे हैं।
'मम्मा, आप झूठी हैं आपने कहा था कि सावन में आप हमें रोज पकोड़े बनाकर खिलाएंगी पर आपने एक दिन भी पकोड़े बनाकर नहीं खिलाए। सावन संध्या का नाम सुनकर नन्हा आयुष शिकायत भरे स्वर में बोला।
'बाबा ,;आपको पकौड़े खाने हैं। मैं अभी बना कर देखा हूँ।' श्यामू ने अंदर आते हुए कहा।
' तू कब आया ? कैसी रही तेरी शादी ?। स्वर को यथासंभव संयत बनाते हुए उसने श्यामू से पूछा।
यद्यपि बेटे का शिकायती स्वर जेहन में तीर की तरह दंशित किए जा रहा था। आँखों में आँसू भर आए थे किंतु वह कहाँ गलत थी ? क्या उसका सामाजिक कार्यक्रमों में भाग लेना गलत था या सब कुछ सामान्य ही है। स्वयं अपराध बोध से ग्रसित उसका मन सबके सहज व्यवहार को ही असहज समझने की भूल कर रहा है। लेकिन अपराध बोध क्यों और किसलिए ? जब पुरुष काम के सिलसिले में घर से बाहर कई-कई दिनों तक रहता है तब तो उसे कोई अपराध बहुत दंशित नहीं करता फिर एक स्त्री ही क्यों कुछ समय घर से बाहर रहने पर स्वयं को अपराधी मान बैठती है। एक ही समाज में यह दोहरा मापदंड क्यों ? मन में कुछ कसमसाने आने लगा था।
'मेम साहब , बस अभी आ रहा हूँ। विवाह तो हो गया गाना दो बरस बाद होगा। मेरे जाने से आपको बहुत तकलीफ हुई होगी।' श्यामू ने हाथ धोकर किचन में घुसते हुए कहा ।
' बाबा के लिए आमलेट बना कर, दो कप बढ़िया कड़क चाय बना दो। तुम भी थके होगे जाकर आराम करो आज हम सब बाहर ही खाना खाएंगे और तुम्हारे लिए पैक करा कर ले आएंगे।'
राजीव जो बात बात पर पार्टियां देखकर अपनी प्रसन्नता प्रकट करते थे वे ने उसके व्यथित हृदय को प्यार भरी बातों से सहलाने की चेष्टा करते हुए कहा।
' हिप हिप हुर्रे यू आर ग्रेट डैड। खूब मजा आएगा मैं जल्दी से होमवर्क कर लेता हूँ।' प्रसन्नता से लगभग नाचते हुए आयुष ने कहा तथा वह अपने स्टडी रूम में चला गया।
'क्यों चेहरे पर बारह बज रहे हैं मैडम ?आज तो आपका आपको प्रसन्न होना चाहिए, आप का कार्यक्रम सफल रहा। जिसके लिए आप महीने भर से परिश्रम कर रही थीं।' आयुष के जाते ही राजीव ने उसको बेडरूम में खींच कर अंक में भरने का प्रयास करते हुए कहा।
'लेकिन आपको काम करना पड़ा।' कहते हुए विशाखा का स्वर दयनीय को आया था।
' काम करना पड़ा तो क्या हुआ ? रोज तो आप करती ही हैं, एक-दो दिन मैंने कर लिया तो इसमें इतना सोचने की क्या बात हो गई ! कम से कम ब्रेड आमलेट तो बनाना सीख गया। कभी वक्त जरूरत पर फिर काम आएगा।' कहते हुए राजीव के हाथों का बंधन कसता जा रहा था।
पुरुष की सफलता के पीछे जिस तरह स्त्री का योगदान होता है उसी प्रकार स्त्री की सफलता के पीछे पुरुष का योगदान होता है, इस तथ्य से आज विशाखा का भली-भांति साक्षात्कार हो गया था पर यह तभी संभव है जब दोनों के विचारों में सामंजस्य हो , आदान-प्रदान की परिभाषा अच्छी तरह समझते हो। तभी वे एक दूसरे के पूरक बनकर मनवांछित लक्ष्य को सफलतापूर्वक प्राप्त कर सकते हैं
राजीव के सशक्त बाहुपाश में , मन में उगे अपराध बोध का दंश कम होने लगा था तथा खोया आत्मविश्वास लौट आया था। विशाखा को लग रहा था कि उसके घर सावन आज ही आया है। अब तक मई-जून की उमस भरी हवाओं ने घर का सुख चैन छीन रखा था। सचमुच मेघ आए या ना आए, पपीहा बोले या ना बोले, जब भी तन मन खुशियों से भर उठे, वही दिन, वही रात, वहीं महीना सावन है।