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बेज़ुबानशायर 143

Inspirational

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बेज़ुबानशायर 143

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शिव रात्रि :- ध्यान ( दोहे )

शिव रात्रि :- ध्यान ( दोहे )

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पावन शिव के पर्व में, अद्वय गीत फुहार । 

शिव-भजनों के भाव से, खुलता अंतर्द्वार । 


जनमन को दें पूर्णता, धर्म सत्य गठजोड़ । 

धीर मना  गुणग्राहिता, तपसा भाव निचोड़ । 


गृहत्यागी माँ तप करें , शिव मिलते पति-रूप । 

उज्ज्वल 'धी' शिव-मय धरा, उत्सव-भाव अनूप । 


साधन शिव को प्रिय सदा, जो चेतन आयाम । 

आदि अंत जिनका नहीं, रखें धरा सुर-धाम । 


शिल्प देव दरशन करें, शारद करतीं गान । 

मुण्डमाल कंठाभरण, त्याग  प्रयोग महान । 


 मैं महेश अंतर नहीं, कहते  त्रेता  राम । 

समदर्शी महिदेव शिव, सहज सुयश के धाम ।


सागर मंथन काल में , विष लाता भूचाल । 

शिव जग के रक्षक बने, कंठ हलाहल ढाल । 


आरण्यक जो देव हैं, शिव वेदों के सार । 

भार्या हैं माँ पार्वती , कार्तिक, विकट कुमार । 


जनहित भावी त्याग ही, योगी शिव संकल्प । 

सेवा मंगल प्रेरणा ,  पूजन  रहे अनल्प ।।



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