शिव रात्रि :- ध्यान ( दोहे )
शिव रात्रि :- ध्यान ( दोहे )
पावन शिव के पर्व में, अद्वय गीत फुहार ।
शिव-भजनों के भाव से, खुलता अंतर्द्वार ।
जनमन को दें पूर्णता, धर्म सत्य गठजोड़ ।
धीर मना गुणग्राहिता, तपसा भाव निचोड़ ।
गृहत्यागी माँ तप करें , शिव मिलते पति-रूप ।
उज्ज्वल 'धी' शिव-मय धरा, उत्सव-भाव अनूप ।
साधन शिव को प्रिय सदा, जो चेतन आयाम ।
आदि अंत जिनका नहीं, रखें धरा सुर-धाम ।
शिल्प देव दरशन करें, शारद करतीं गान ।
मुण्डमाल कंठाभरण, त्याग प्रयोग महान ।
मैं महेश अंतर नहीं, कहते त्रेता राम ।
समदर्शी महिदेव शिव, सहज सुयश के धाम ।
सागर मंथन काल में , विष लाता भूचाल ।
शिव जग के रक्षक बने, कंठ हलाहल ढाल ।
आरण्यक जो देव हैं, शिव वेदों के सार ।
भार्या हैं माँ पार्वती , कार्तिक, विकट कुमार ।
जनहित भावी त्याग ही, योगी शिव संकल्प ।
सेवा मंगल प्रेरणा , पूजन रहे अनल्प ।।
